SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 174
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३८ १६६ एवं पुत्रवधू के प्रति वैसा स्नेह होना चाहिए कि वे कैसे सुख-शांति से जीवन व्यतीत करें एवं धर्माराधना से अपने जीवन को सफल बनायें । यदि परस्पर का स्नेहपूर्ण और औचित्यपूर्ण सम्बन्ध बना रहे तो बिना प्रयोजन पुत्र को अलग नहीं होना पड़े। विशेष परिस्थिति में अलग रहना पड़े, दूसरे गाँव में रहना पड़े तो पत्नी के साथ माता-पिता को भी अपने साथ ले जाने चाहिए। यदि वे नहीं आ सकते हों तो पत्नी को माता के साथ रख सकता है, वह भी संभव न हो तो किसी स्नेही-स्वजन में से विश्वासपात्र प्रौढ़ या वृद्ध महिला को घर पर रख सकता है। किसी भी परिस्थिति में पत्नी को अकेली घर पर नहीं रखना चाहिए। _शील और सदाचार का श्रेष्ठ मूल्यांकन करोगे तो ही यह बात आपके दिमाग में जंचेगी। धन-संपत्ति और सुख-सुविधाओं से बढ़कर शील और सदाचार है- यह बात ऊंची है हृदय में? यह बात भी जाने दो, आप अपनी पत्नी से यदि मानसिक और शारीरिक संतोष पाना चाहते हो तो भी आपको ये सारी बातें ध्यान में लेनी चाहिए। यदि पत्नी से मानसिक शांति और शारीरिक संतोष प्राप्त न हो, घर के सारे कार्य सुचारु रूप से संपन्न न हों तो फिर शादी किसलिए? यदि पत्नी किसी परपुरुष के प्रेम में बह गई और शारीरिक संबंध कर लिया....तो क्या आप उस पत्नी से शान्ति संतोष पाओगे? उससे आप सुख-सुविधा की अपेक्षा करोगे? दुनिया के सामने मत देखना | दुनिया में तो सब कुछ चलता है....संसार पापमय है। आपको यदि बचना है तो आप बच सकते हो दुनिया की अनेक बुराइयों से । दुनिया के प्रवाह में बहते रहे तो विनाश निश्चित है। आप ज्ञानी पुरुषों का मार्गदर्शन लेते रहो और मार्गदर्शन के अनुसार अपना जीवन बनाने का प्रयत्न करते रहो। सभा में से : इस मार्गदर्शन के अनुसार इस युग में तो जीना मुश्किल लगता है। मार्ग अच्छा है परन्तु देश-काल प्रतिकूल है! ___ महाराजश्री : मुश्किल तो है ही, परन्तु असंभव नहीं है। प्रतिकूल देशकाल में भी अच्छा जीवन जीनेवाले लोग हैं न? सत्त्व चाहिए, दृढ़ता चाहिए और पूर्ण श्रद्धा चाहिए। ज्ञानी पुरुषों के बताये हुए गृहस्थधर्म के अनुसार जीवन जीने से अवश्य सुख-शान्ति मिलेगी और धर्मपुरुषार्थ होगा। वेश्यासंग निकृष्ट है : ___ यदि कोई मनुष्य कहे : शादी-विवाह की इस उलझन में उलझने के बजाय, जब कामवासना जगे तब वेश्या का संग करना अच्छा! पैसा दिया और For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy