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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३८ १६२ बाहर की दुनिया में नहीं भटकेगा। भले आप श्रीमन्त हो, नौकर रख सकते हो, फिर भी सभी गृहकार्य नौकर से नहीं करवायें। अपने परिवार की सेवा करने में स्त्री को शर्म नहीं होनी चाहिए। हाँ, कुछ महिलाओं को गृहकार्य करने में शर्म आती है! किस बात की शर्म? पाप करना हो तो शर्म आये, किसी का बुरा करना हो तो शर्म आये, सेवा करने में शर्म? आश्चर्य की बात है! जो स्त्री परिवार की सेवा करती है, परिवार का उसके प्रति प्रेम बढ़ता है। परस्पर का स्नेह दृढ़ होता है। स्त्री के पास अधिक पैसे नहीं होने चाहिए : स्त्री की योग्यता देखकर ही उसको रुपये देने चाहिए । खर्च करने की उसकी पद्धति देखनी चाहिए | जो स्त्री अपने पति की आय के अनुसार व्यय करती हो, फालतू खर्च नहीं करती हो, जितना आवश्यक हो उतना ही खर्च करती हो, उस महिला को आप तिजोरी सौंप दो तो कोई चिन्ता नहीं। परन्तु ऐसी महिलायें बहुत कम मिलेंगी। ज्यादातर महिलाएँ ऐसी मिलेंगी कि यदि उनके पास पैसे आये तो आवश्यक खर्च के साथ अनावश्यक खर्च भी कर डालेंगी! एक साड़ी की आवश्यकता होगी, खरीदेगी आधा दर्जन साड़ियाँ! लेने गई होगी एक अलंकार, ले आयेगी तीन-चार अलंकार! यदि उसके पास पैसे हैं तो अपने वस्त्र और जेवर में, अपने आनंद-प्रमोद में खर्च कर डालेगी। इसलिए स्त्री के पास थोड़े ही रुपये होने चाहिए। जो महिलाएँ स्वयं धन कमाती हैं, उनके लिए यह नियम नहीं लागू होगा! उसकी कमाई के रुपये का उपयोग वह मनमाने ढंग से करेगी। हाँ, यदि वह किसी जिम्मेदारी को निभाती है, उस पर अपने परिवार के पालन की जिम्मेदारी है तो वह फालतू खर्च नहीं करेगी। जिस महिला पर ऐसी कोई आर्थिक जिम्मेदारी नहीं होती है और रुपये कमाती है, वैसी महिलाएँ, यदि उसमें विवेकदृष्टि नहीं है तो वह व्यर्थ अर्थव्यय करती रहेगी और अपने जीवन को क्षति भी पहुँचायेगी। विवेकी और पारिवारिक जिम्मेदारी को समझनेवाली विचक्षण महिलाएँ तो इस प्रकार धनसंचय करती हैं कि अवसर आने पर अपने पति की सहायक बन जाती हैं, परिवार को आर्थिक संकट से उबार लेती हैं। प्राचीनकाल के ऐसे कुछ उदाहरण पढ़ने में आते हैं। वर्तमानकाल में भी ऐसे कुछ किस्से सुनने में आते हैं। ऐसी स्त्री जिस परिवार में हो, वहाँ संपत्ति सुरक्षित रहती है। पुरुष का विवेक चाहिए। उसको अपनी पत्नी की योग्यता का ख्याल होना चाहिए। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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