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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२५ उनमें कषाय भी होते हैं, उनमें रसानुभूति, वैभवलालसा एवं आरामप्रियता भी होती है.....कष्टों से बचने की वृत्ति भी होती है। इन सब पर साधु संयम रखता है यानी इन्द्रियों को वश में रखता है, कषायों को उग्र नहीं होने देता है, रसास्वाद नहीं करता है, वैभवों की लालसा को जगने नहीं देता है एवं अप्रमत्त रहने का भरसक प्रयत्न करता है। फिर भी कभी इन्द्रियाँ उत्तेजित हो गई, बेलगाम हो गई.... तो साधु को गिरा भी देती हैं। कषाय की आग कभी भड़क गई तो मुनि को जला भी देती है! रसानुभूति की वासना तीव्र हो गई तो साधु का पतन भी करा देती है! वैभवों की लालसा उत्तेजित हो गई तो मुनि का अधःपतन भी करा देती है। कभी प्रमाद..... आरामप्रियता प्रबल हो गई तो मुनि का शतमुख विनिपात भी करा देती है। सराग धर्मक्रिया से पुण्यबंध : ___ फिर भी, ज्ञानमूलक वैरागी निर्भय रह सकता है | चाहिए निरन्तर जाग्रति! निरन्तर जाग्रत साधु अपने साधुधर्म का यथायोग्य पालन कर सकता है। इससे वह अपूर्व पुण्यकर्म का बंध करता है। 'सराग-संयमी' ऐसे साधु को अपने संयम पर प्रेम होता है, अपने गुरु के प्रति प्रेम होता है, परमात्मा के प्रति प्रेम होता है। जिस धर्मक्रिया में प्रेम होता है, राग होता है, उस धर्मक्रिया से पुण्यकर्म बंधता ही है। सभा में से : पुण्यकर्म भी मोक्षप्राप्ति में अवरोधक तत्त्व है न? बाधक है न? महाराजश्री : पुण्यकर्म के दो प्रकार हैं। एक है पापानुबंधी पुण्य और दूसरा है पुण्यानुबंधी पुण्यकर्म । पापानुबंधी पुण्यकर्म मोक्षमार्ग की आराधना में बाधक बनता है, पुण्यानुबंधी पुण्यकर्म बाधक नहीं बनता है परन्तु मोक्षमार्ग की आराधना में सहायक बनता है। सभा में से : पापानुबंधी पुण्य किसको कहते हैं? महाराजश्री : पुण्यकर्म के उदय से जीवात्मा को सुख मिलते हैं न? जब सुख मिले, सुख के साधन मिले, तब वह जीवात्मा पापाचरण करे, सुख के साधनों का उपयोग पाप करने में करे तो समझना कि पापानुबंधी पुण्य का उदय हुआ है। पुण्य के उदय से शरीर अच्छा मिला, नीरोगी शरीर मिला, परन्तु उस शरीर से भोगविलास ही करता है! पुण्य के उदय से काफी धन मिला, उस धन से बुरे काम ही करता है। पुण्य के उदय से सत्ता मिल गई, उस सत्ता से हिंसा और अत्याचार ही करता है.... तो समझना कि पापकर्म For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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