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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२५ देखा, जो कि उसी नगर में शादी करने के लिए आया हुआ था। और वह खिलखिलाकर हँस पड़ा! उसको विश्वभूति के शब्द याद आये : 'मैं अपने एक मुक्के से तेरा सर फोड़ सकता हूँ....' विशाखानन्दी ने सोचा : 'अपने एक मुक्के से मेरा सर फोड़ने की शक्तिवाला विश्वभूति गाय की इस एक टक्कर से जमीन पर गिर गया!' और वह जोर-जोर से हँसने लगा। विश्वभूति मुनि ने विशाखानन्दी को देखा । अपने पर हँसता हुआ देखा.....और मुनि की ज्ञानदृष्टि ओझल हो गई.... मोहदृष्टि खुल गई! विश्वभूति मुनि के हृदय में 'अहं' और 'मम' उभर आये। 'तू क्या मुझे कमजोर समझता है? शक्तिहीन मानता है? ठहर, अभी मैं मेरी शक्ति का परिचय देता हूँ.....।' मुनि ने दो हाथ से गाय के दो सींग पकड़े....गाय को घुमाकर आकाश में ऊपर उछाल दिया.....! जब गाय नीचे गिरती है, मुनिराज ने अपने दो हाथों में उसे पकड़ लिया। जमीन पर गिरने नहीं दिया। विशाखानन्दी, मुनि की यह दिव्य शक्ति देखकर स्तब्ध रह गया....घबरा गया... 'शायद मुझे अभी पकड़कर आकाश में उछालेगा......तो मैं सीधा स्वर्ग में ही पहुँच जाऊँगा.....।' ऐसा घबराया कि वहाँ से दुम दबा कर भाग गया। _ विशाखानन्दी को भागता हुआ देखकर विश्वभूति मुनि खुश हुए। दूसरे को भगाकर दूसरों को हराकर, दूसरे को मारकर खुश होना घोर मोहदशा है| मुनिराज ने सोचा : 'इस दुनिया में ताकतवालों का बोलबाला है। दुनिया में शक्ति की पूजा है। मुझे शक्तिशाली बनना है। दुनिया का श्रेष्ठ शक्तिशाली बनूँगा | मेरी उग्र तपश्चर्या और मेरी शुद्ध साधुता से आने वाले भव में मुझे श्रेष्ठ शक्ति प्राप्त होनी चाहिए।' मुनिवर की ज्ञानदृष्टि नष्ट हो गई, उन्होंने साधुता का सौदा कर लिया भौतिक..... शारीरिक शक्ति के साथ! दूसरे भव में उनको ताकत मिली परन्तु साधुता नहीं मिली। उस शक्ति ने उनकी आत्मा का अधःपतन किया... मर कर नरक में चली गई उनकी आत्मा। वैराग्य स्थिर रहना चाहिए : । ज्ञानमूलक वैराग्य से साधुता स्वीकार करने के बाद भी साधुजीवन में सतत ज्ञानदृष्टि खुली रहनी चाहिए। वैराग्य जीवंत रहना चाहिए | संसार का त्याग करना, भौतिक सुखों का त्याग करना सरल है परन्तु वैराग्य को स्थिर रखना दुष्कर है। चूंकि साधु भी मनुष्य तो है न! उसकी इन्द्रियाँ होती हैं, For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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