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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ३६ १४० महाराजश्री : आज की बात अभी नहीं करना है, अभी तो अपन अपनी प्राचीन परम्परा को लेकर सोच रहे हैं। क्यों ऋषि-मुनियों ने बारह वर्ष की उम्र में स्त्री को शादी योग्य माना, उस पर चिंतन कर रहे हैं। शादी से पूर्व स्त्री का संपूर्ण ब्रह्मचारिणी होना अनिवार्य माना गया है। आप लोग मानते हो न कि आपकी लड़कियाँ शादी से पूर्व ब्रह्मचारिणी बनी रहें? परन्तु ब्रह्मचारी बने रहने के लिए कितना दृढ़ मनोबल चाहिए, कितना पवित्र वातावरण चाहिए, कितना सात्त्विक भोजन चाहिए, कैसी वेश-भूषा चाहिए यह सब आपने सोचा है ? उद्दीप्त कामवासना पर संयम रखना, मैथुनसेवन नहीं करना, यह मामूली बात नहीं है। सभी स्त्री-पुरुष वैसे संयमी नहीं हो सकते । पाँच प्रतिशत ऐसे संयमी स्त्री-पुरुष हों तो भी बहुत है । यों भी मैथुनसंज्ञा मनुष्य में प्रबल होती है। पशुओं से भी ज्यादा प्रबल मैथुनसंज्ञा मनुष्य में होती है। देवों की कामवासना से ज्यादा प्रबल कामवासना मनुष्य में होती है। ऐसी वास्तविक परिस्थिति में मनुष्य को कुछ वर्ष तक ब्रह्मचर्य का पालन करना, दिव्यदृष्टा ऋषि-मुनियों ने सरल पाया। बारह वर्ष की उम्र में स्त्री की पाँचों इन्द्रियों का पूर्ण विकास होता है, मानसिक विकास भी पर्याप्त मात्रा में होता है, यदि उसकी शादी सोलह वर्ष के पुरुष के साथ हो तो वह स्त्री पत्नी के कर्तव्यों का पालन करने में सक्षम बन सकती हैं । उसकी कामवासना शान्त होती है और पथभ्रष्ट, चरित्रभ्रष्ट होने से बच सकती है । जिस स्त्री का शादी से पूर्व संपूर्ण ब्रह्मचर्यपालन होता है और शादी के बाद अपना पतिव्रत अखंड होता है, उस स्त्री की संतान प्रायः सात्त्विक, गुणवान और शीलवान् होती हैं। ऐसी प्रजा से ही मोक्षमार्ग बना रहता है। आत्मज्ञानी दिव्यदृष्टा ऋषि-मुनियों की दृष्टि में, जब कन्या रजस्वला बनती है, तब वह शादी योग्य बनती है । स्त्री का रजस्वला होना, शादी की योग्यता का सूचक माना गया है। शिक्षा की दृष्टि से, स्त्री के जीवन में जितनी आवश्यक शिक्षा चाहिए, उतनी शिक्षा उसको बारह वर्ष की उम्र में मिल सकती है। स्त्री को व्यापार नहीं करना होता है, नौकरी नहीं करनी होती है । उसकी संपूर्ण जिम्मेदारी पति की होती है। T भारतीय जीवन व्यवस्था के अनुसार आर्थिक जिम्मेदारी पुरुष की होती है और घर की जिम्मेदारी स्त्री की होती है। घर को स्वच्छ रखना; परिवार को समय पर भोजनादि देना; वस्त्र धोना; संतानों की सेवा, शिक्षा और पालन करना; अतिथि का सत्कार करना; घर की शोभा बढ़ाना; परिवार को स्नेह से, For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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