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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३६ १३४ वहाँ भी चार-चार लड़के हुए, उनके परिवारों में लड़के-लड़कियाँ पैदा हुए तो उनके आपस में शादी-संबंध नहीं होने चाहिए....। एक पिता की, पितामह की, प्रपितामह की परम्परा को समान गोत्र कहते हैं। समान गोत्रवालों को आपस में शादी-सम्बन्ध करने में छोटे-बड़ों के उचित व्यवहार में क्षति होती है। मान लो कि कन्या का पिता बड़ा है, सब परिवारवाले और गोत्रवाले उनके साथ पूज्य का व्यवहार करते हैं, उम्र में और वैभवादि में वह बड़ा है, जमाई का पिता उम्र में और वैभवादि से छोटा है, अब क्या होगा? कन्या के पिता को, छोटे समधी के आगे यानी जमाई के पिता के सामने भी विनम्र होना पड़ेगा! पहले कन्या का पिता पूज्य माना जाता था, अब उस पूज्य पुरुष को जमाई के पिता के सामने हाथ जोड़ने पड़ेंगे। पूजा का पात्र पूजक बन जायेगा, पूजक पूज्य बन जायेगा! ऐसा होने में सामाजिक मर्यादाओं का भंग हो जाता है और वह भंग अनर्थकारी बनता है। ___ समान गोत्रवालों के साथ शादी नहीं करने का विधान किसलिए किया गया है, आप लोग समझे न? प्राचीनकाल की सामाजिक व्यवस्था में विनय और मर्यादा का कितना महत्त्व होगा? छोटे-बड़ों में पूज्य-पूजक भाव कितना महत्त्व रखता होगा? एक पिता की संतान-परंपरा में एक-दूसरे के साथ कितना औचित्यपूर्ण व्यवहार होगा? उस औचित्यपूर्ण मर्यादाओं के पालन को अखंड रखने के लिए परस्पर का शादी-संबंध निषिद्ध था। कन्या के पिता को विनम्र होना चाहिए : दूसरी एक बात यह फलित होती है कि पूर्वकालीन सामाजिक व्यवहारों में दामाद के पिता का स्थान, कन्या के पिता से बढ़कर होता था। दामाद का पिता कन्या के पिता से विशेष महत्त्व रखता था। कन्या के पिता को दामाद के पिता की विशेष खातिरदारी करनी पड़ती थी! अपनी लड़की को शादी के बाद कोई कष्ट न हो, कोई तकलीफ न हो इसलिए दामाद को, दामाद के पिता को, दामाद की माता को, बहनों को... कन्या का पिता सबको खुश रखना चाहे, वह स्वाभाविक भी है। ___ कहने का तात्पर्य यह है कि समान गोत्रवालों में शादी करने से, उनके परस्पर के व्यवहारों में, परस्पर के छोटे-बड़े के सम्बन्धों में बाधा आती है, मानहानि एवं स्वमानभंग आदि होने की संभावना होती है.... इसलिए समान गोत्रवालों के साथ शादी का सम्बन्ध नहीं रखना चाहिए। सामाजिक जीवन में हर व्यक्ति मान-अपमान को विशेष महत्त्व देता है। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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