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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३५ १२९ पत्नी का आकर्षण बन जाता है। यदि वैसे किसी रूपवान पुरुष से परिचय हो गया तो संभव है कि वह चरित्रहीन बन जाये। अपने पति को धोखा दे दे। यदि पति रूपवान है तो रूपवती पत्नी को दूसरे रूपवान पुरुषों के प्रति प्रायः आकर्षण नहीं होगा रूप के माध्यम से! दूसरे किसी माध्यम से परपुरुष के सम्पर्क में जाय, वह दूसरी बात है। पति रूपवान है परन्तु निर्धन है, तो संभव है कि उसकी पत्नी किसी श्रीमन्त रूपवान पुरुष के चक्कर में जाय! इसलिए ज्ञानी पुरुषों ने वैभव-संपत्ति की समानता को महत्त्व दिया है। __ पति रूपवान हो, धनवान् हो, कुलवान् हो और शीलवान् भी हो, परन्तु फिर भी अति कामातुर पत्नी परपुरुष का संग कर लेती है! अपने रूप और सौन्दर्य से परपुरुष को आकर्षित कर लेती है। वैसे अति कामासक्त पुरुष भी अपनी सुन्दर पत्नी के अलावा दूसरी रूपवती महिलाओं में आसक्त बन जाता है। अति कामासक्ति, स्त्री हो या पुरुष हो, उसका पतन करवाती है। भर्तृहरी राजा की पत्नी पिंगला क्यों परपुरुषगामिनी बनी थी? क्या भर्तृहरी में रूप नहीं था? भर्तृहरी क्या बलवान नहीं था? भर्तृहरी कुलवान नहीं था? शीलवान नहीं था? सब कुछ था फिर भी पिंगला उससे संतुष्ट न हो पायी थी और परपुरुष का संग किया था न? व्यभिचारिणी बन गई थी। संसार की ये विषमताएँ तो कभी भी टलनेवाली नहीं हैं, फिर भी इसी संसार में रह कर मोक्षमार्ग की आराधना की जाती है, इसलिए धर्मपुरुषार्थ के लिए अनुकूल परिवार की अपेक्षा की जाती है। यदि पुण्य का उदय हो तो पसन्दगी का परिवार मिलता है, अन्यथा नहीं। जहाँ तक अपनी बुद्धि, अपना ज्ञान पहुँचे वहाँ तक ज्ञानी पुरुषों के मार्गदर्शन के अनुसार पात्र की खोज करनी है, बाद में तो भाग्य ही निर्णायक बनता है। गंदा एवं बुरा है यह संसार : संसार तो ऐसी विषमताओं से भरा हुआ है कि अपन को आश्चर्य हो जाय! रूपवान् पति को छोड़कर कुरूप पुरुष का संग करनेवाली रूपवतियाँ होती हैं! पूर्वकाल में थीं और वर्तमानकाल में भी हैं! वैसे, घर में रूपवती और शीलवती पत्नी होते हुए भी वेश्याओं के वहाँ जानेवाले पुरुष पूर्वकाल में थे और वर्तमानकाल में भी हैं! यह संसार है! बुराइयों से, असंख्य बुराइयों से भरा हुआ यह संसार है। पसन्द आ गया है न? कुछ गंभीरता से सोचते हो या नहीं? अपने सर्वज्ञ वीतराग परमात्मा ने संसार को क्यों त्याज्य बताया? चारित्र्यधर्म को क्यों उपादेय बताया? यदि संसार विषमताओं से परिपूर्ण नहीं For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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