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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३५ १२८ ग्रन्थकार आचार्यदेव ने कुल और शील की समानता देखने को कहा; टीकाकार आचार्यश्री ने वैभव की, वेश और भाषा की भी समानता देखने का निर्देश किया, मैं और तीन बातों की समानता देखना आवश्यक मानता हूँ| वर्तमानकाल में समग्र समाज-व्यवस्था बदलती जा रही है, अथवा तो समाजव्यवस्था ही ध्वस्त हो गई है। ऐसी विषम परिस्थिति में स्त्री-पुरुष को बड़ी सावधानी से पति-पत्नी की पसन्दगी करनी चाहिए कि जिससे दाम्पत्य जीवन में परस्पर की कटुता न उभरे और धर्मआराधना में प्रगति हो सके। दूसरी तीन समानताएँ जो मैं बताना चाहता हूँ, वे हैं १. रूप की समानता २. रुचि की समानता ३. रस की समानता पहले जो पाँच प्रकार की समानताएँ बतायी हैं वे तो देखने की हैं ही, साथ ही ये तीन समानताएँ भी उतनी ही अपेक्षित हैं। रूप की समानता : ___ पति रूपवान है तो पत्नी का रूपवान होना जरूरी है। पति रूपवान है और पत्नी रूपवान नहीं है, तो पत्नी के मन में कभी भी पति के विषय में शंका पैदा हो सकती है... जब किसी रूपवती स्त्री के साथ पति बात करेगा, हँसेगा या किसी वस्तु का आदान-प्रदान करेगा तब पत्नी के मन में ईर्ष्या....शंका पैदा हो सकती है। ___संभव है कि पति को वैसी रूपहीन पत्नी पसन्द न आये । धन-दौलत या शिक्षा के माध्यम से शादी तो कर ली, परन्तु बाद में पत्नी के प्रति अनुराग न रहे और दूसरी कोई रूपवती स्त्री से प्रेम कर ले! क्योंकि आजकल मनुष्य में रूप का आकर्षण काफी बढ़ गया है। पहले रूप का आकर्षण नहीं था, वैसा मेरा कहना नहीं है, पहले भी रूप का आकर्षण तो था ही, परन्तु आज जितना है, उतना नहीं था। आज तो रूपहीन, सौन्दर्यहीन पत्नी का त्याग करके दूसरी रूपवती स्त्री से संबंध कर लेना मामूली बात हो गयी है। वैसे, पति रूपहीन है, सौन्दर्यरहित है और पत्नी रूपवती है तो भी जीवन में विषमता पैदा हो सकती है। बंगला-मोटर-धन-संपत्ति वगैरह देखकर शादी तो कर ली रूपहीन पुरुष से, परन्तु रूपहीन पति पसन्द नहीं है.... उसके प्रति प्रीति-अनुराग पैदा नहीं होता है.... तब दूसरे रूपवान पुरुषों के प्रति For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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