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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३३ ___१०९ __ आजकल जो लड़के और लड़कियाँ स्वयं पसन्दगी कर शादी कर लेते हैं वहाँ रुपये से भी ज्यादा रूप का माध्यम रहता है। पुराने लोग रूपये को माध्यम बनाते थे, वर्तमान समाज ने रूप को पसन्दगी का माध्यम बनाया है। इनमें भी दो विभाग हैं। लड़के विशेष कर रूपवती लड़की पसन्द करते हैं तो लड़कियाँ विशेष कर श्रीमन्त लड़के पसन्द करती हैं। ये दोनों माध्यम, पसन्दगी के विषय में अपूर्ण हैं। रूप और रुपये ही सुखी जीवन के आधार नहीं हैं। रूप और रुपये से स्नेह, प्रेम और सद्भाव प्राप्त नहीं होता है। स्नेह, प्रेम और पारस्परिक सद्भाव ही सुखी गृहस्थ जीवन के आधारस्तंभ हैं | रूप देखकर शादी की, शादी के बाद उस स्त्री का ऐसा दर्द हुआ कि उसका रूप चला गया। फिर क्या होगा? उसको पति का प्यार मिलेगा क्या? नहीं, पति को तो रूप का मोह था, पत्नी में अब रूप नहीं रहा। बस, पत्नी घर में मजदूरी करती रहेगी और पति दूसरी रूपवतियों के पीछे भटकता फिरेगा। वैसे स्त्री ने रुपये देखकर पति पसन्द किया, शादी के पश्चात् पति को व्यापार में नुकसान हुआ, रुपये चले गये, बंगला बेच देना पड़ा, कार भी चली गई.... अब क्या उस पत्नी को अपने पति में रस रहेगा? नहीं, दूसरा जो कोई पुरुष उसको मौज-मजा कराता होगा, सिनेमा दिखाने ले जाता होगा, 'मार्केटिंग' करने रुपये देता होगा.... उस पुरुष की रखैल बन जायेगी। आजकल सभ्य समाज जो कहलाता है, उस समाज में ऐसी प्रच्छन्न वेश्याओं की संख्या बढ़ रही है। वैसे आवारा युवानों की संख्या भी बढ़ रही है। ___ आजकल मनुष्य का व्यक्तिगत जीवन, पारिवारिक जीवन, सामाजिक जीवन और राष्ट्रीय जीवन कितना गिरता जा रहा है? कितना अशान्त बनता जा रहा है? कितना हिंसामय, क्लेशमय और पापमय बन गया है? क्योंकि शादी के आदर्श ही टूट गये हैं | स्त्री-पुरुष के संबंध अत्यन्त निम्नस्तर के बने हैं। धर्मपुरुषार्थ और मोक्षदृष्टि जीवन से बहिष्कृत हो गये हैं। ग्रन्थकार आचार्यदेव गृहस्थधर्म का विवेचन करते हुए दूसरा धर्म बता रहे हैं विवाह के औचित्य का | औचित्य का विचार आगे करेंगे.... आज बस, इतना ही। For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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