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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३३ १०८ ___ महाराजश्री : लेकिन ऐसा मार्गदर्शन मिले तो उसी मार्गदर्शन के अनुसार लड़के-लड़कियों की शादी करोगे न? सभा में से : लड़के-लड़कियों की शादी अब हमको नहीं करनी पड़ती है, वे लोग स्वयं कर लेते हैं। महाराजश्री : तो फिर मार्गदर्शन उन लोगों के काम आयेगा। यदि उनको आपस के संघर्षों से बचना है तो। आजकल लड़के-लड़कियाँ जो स्वयं पसन्दगी कर शादी कर लेते हैं, उनमें से नब्बे प्रतिशत शादियाँ निष्फल जा रही हैं, क्योंकि उनको पसन्दगी करना ही नहीं आता है। शादी कोई पैसे कमाने का तरीका थोड़े ही है! यह गलत परम्परा जो शुरू हुई है उसमें निमित्त तो आप लोग ही बने हो। आप लोगों ने अपनी लड़की की शादी मात्र धन-संपत्ति के माध्यम से करना शुरू कर दिया । कन्याविक्रय और वरविक्रय क्या है? किसी प्रदेश में कन्याविक्रय होता है तो किसी प्रदेश में वरविक्रय होता है। यह 'विक्रय' क्या है? भयानक विकृति! मात्र रूपये के माध्यम से कन्या बेची जाती है, लड़का बेचा जाता है। इस प्रकार की शादियाँ कैसे सफल हो सकती हैं? शादी के बाद जब पति और पत्नी के बीच तनाव पैदा हो जाता है, मनमुटाव हो जाता है, झगड़ा होने लगता है, मारपीट शुरू हो जाती है; तब दोनों के जीवन में घोर अभाव, घोर अशान्ति पैदा हो जाती है। एक-दूसरे से असन्तुष्ट वे लोग गलत रास्ते पर चले जाते हैं। शादी कोई पैसा कमाने का व्यापार नहीं है। शादी मात्र मनोरंजन और जातीय सुख का ही मार्ग नहीं है, शादी जिस स्त्री-पुरुष के बीच होती है उन दोनों के जीवन सदाचारी बने रहने चाहिए। दोनों का धर्मपुरुषार्थ सुचारू रूप से होना चाहिए। उनकी संतति भी संस्कारी और सद्गुणोंवाली होनी चाहिए। रूप और रुपयों की रामायण है : ___ पति-पत्नी के बीच जहाँ-जहाँ भी वैर-विरोध और विद्वेष पैदा होता है वहाँ वे दोनों गलत मार्ग पर चले जाते हैं। शायद ही कोई स्त्री या पुरुष ऐसे व्यभिचार से बचता होगा। इसलिए, स्त्री-पुरुष का आपस में अच्छा स्नेहसद्भाव होना चाहिए। यह स्नेह-सद्भाव स्वार्थमूलक नहीं होना चाहिए। एकदूसरे के सुख-दुःख में सहभागी बनने का आदर्श होना चाहिए | एक-दूसरे के प्रति सहनशील, उदार और गंभीर बने रहना चाहिए | For Private And Personal Use Only
SR No.009630
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages291
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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