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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रवचन- ५ VIJIO www.kobatirth.org अज्ञानता का स्वीकार हो ज्ञान को भूमिका है। मूर्ख आदमी, अपने आपको महा बुद्धिमान समझता है! पागलखाने का पागल अपने आपको पागल नहीं मानता ! Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तान में भान कहाँ रहता है? जोश में होश अक्सर खो जाता है। जवान पीढ़ी रूप के पीछे पागल बनी हुई है, तो पुरानो पोठो रुपयों के पीछे लार टपकाती हुई भटक रही है। धर्मस्थानों में भी जैसे फैशन-शो परेड़वाली हालत हुई जा रही है। वेशस्पर्धा, केशस्पर्धा और रूपस्पर्धाएँ मची हुई हैं। ● सभी सुखों का कारण निष्पाप जीवन है। भौतिक और आध्यात्मिक, सभी सुखों का असाधारण कारण निष्पाप जीवन है। * जब तक संसार में जन्म लेना पड़ेगा, तब तक दुःख तो रहेंगे हो ! अब तो वैसा पुरुषार्थ कर लेना चाहिए कि, वापस जन्म लेना हो न पड़े! वह पुरुषार्थ है सम्यग्दर्शन, ज्ञान और चरित्र का । प्रवचन : ५ महान श्रुतधर आचार्यदेवश्री हरिभद्रसूरीश्वरजी 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ के प्रारंभ में धर्म का प्रभाव बताते हैं : ' धनदो धनार्थिनां प्रोक्तः कामिनां सर्वकामदः । धर्म एवापवर्गस्य पारम्पर्येण साधकः ।।' जिस तत्त्व के प्रति मनुष्य की दृष्टि नहीं गई हो, जिस वस्तु का मनुष्य को कोई परिचय नहीं हो, उस तत्त्व के प्रति यदि मनुष्य को आकर्षित करना है, उस तत्त्व के प्रति प्रेम और आदर पैदा करना है; तो उस मनुष्य को उस तत्त्व का प्रभाव समझाना ही पड़ेगा । उस तत्त्व का असर बताना ही पड़ेगा । यदि मनुष्य को समझ में आ जाय कि 'मैं जो चाहता हूँ वह इससे मुझे प्राप्त होगा, तो मनुष्य तुरन्त उसे अपनायेगा । मनुष्य की, साधारण मनुष्य की फलेच्छा बलवान होती है। फलेच्छा के बिना प्रवृत्ति करनेवाला या तो मूर्ख होता है For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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