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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४ ५३ ने कहा : 'हाँ, हो गया संस्तारक ।' तुरन्त जमाली मुनि खड़े हुए और सोने के लिए संस्तारक के पास आये। उन्होंने देखा कि अभी श्रमण संस्तारक बिछा रहे हैं, बिछाने की क्रिया चालू है। जमाली को गुस्सा आ गया, वे बोले : 'तुम श्रमण हो, मृषावाद का तुमने त्याग किया है, तुम महाव्रतधारी हो, तुमने झूठ क्यों बोला? संस्तारक तैयार नहीं है फिर भी तुमने कहा कि संस्तारक तैयार है...।' ___ श्रमण ने हाथ जोड़कर विनय से कहा : 'हे महामुनि, भगवान महावीर स्वामी ने कहा है कि जो क्रिया हो रही हो, कहा जा सकता है कि क्रिया हो गई! यह व्यवहारभाषा है और सर्वमान्य भाषा है। भगवान ने कहा है 'कडेमाणे कडे' यानि क्रियमाण-क्रिया को कृत-क्रिया कह सकते हैं। जमाली ने कहा : 'जहाँ प्रत्यक्ष विरोध दिखता है, वहाँ सिद्धान्त की बात नहीं टिक सकती। क्रिया अपूर्ण है, पूर्ण नहीं हुई है, तो कैसे कह सकते हो कि क्रिया हो गई? मैंने प्रत्यक्ष देखा कि संस्तारक (ऊनी बिछौना) अभी पूरा बिछाया नहीं है, फिर भी कैसे माना जाये कि संस्तारक बिछ गया?' श्रमणों के साथ जमाली ने काफी चर्चा की। बात भगवान के पास पहुंची। भगवान ने जमाली को खूब समझाया कि क्रिया भले ही चल रही हो, क्रिया हो गई-वैसा व्यवहारभाषा में बोला जा सकता है। जैसे तुम राजगृही से कौशाम्बी जाने को यहाँ से रवाना हुए, अभी तो तुम राजगृही के ही प्रदेश में हो, कोई आकर यहाँ किसी श्रमण से पूछे कि 'जमाली मुनि कहाँ हैं?' तो श्रमण जवाब देगा : 'वे तो कौशाम्बी गये हैं!' अभी तुम कौशाम्बी नहीं पहुँचे हो फिर भी बोला जाता है कि 'कौशाम्बी गये हैं!' भगवान ने अनेक उदाहरण और अनेक तर्क देकर जमाली को समझाने का भरसक प्रयत्न किया, परन्तु जमाली मुनि नहीं माने! क्योंकि बात पकड़ी गई थी। हजारों मुनियों के सामने वाद-विवाद करने से अहंकार पुष्ट हुआ था । अहंकार ने भगवान की सर्वज्ञता को भुला दिया! भगवान के प्रति जो श्रद्धाभाव था, उस श्रद्धाभाव को नष्ट कर दिया। जमाली भगवान को छोड़ कर चले गये । ___ अहंकारयुक्त जिद का भयंकर परिणाम आता है। ज्ञानयुक्त जिद और अहंकारयुक्त जिद में बहुत अंतर है। ज्ञानयुक्त जिदवाला मनुष्य जब अपनी गलती समझेगा, तुरन्त अपनी जिद छोड़ देगा । अहंकारयुक्त जिदवाला आदमी अपनी गलती समझने पर भी जिद नहीं छोड़ेगा। विभीषण ने रावण को श्रीराम को सीता सम्मान के साथ सौंप देने को कितना समझाया था? फिर भी रावण For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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