SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-४ ५२ नारदजी को भगवान के वचन याद आये । 'वह सेठ वैकुंठ में नहीं आएगा।' परन्तु फिर भी नारदजी ने प्रयत्न जारी रखने का निर्णय किया! क्योंकि अब तो उनकी प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था! नारदजीने भगवान की बात को मिथ्या कर, सेठ को वैकुंठ में ले आने की प्रतिज्ञा की थी! प्रश्न जब प्रतिष्ठा का विषय बन जाता है, तो मनुष्य अपनी पूरी ताकत लगा देता है उस प्रश्न को सुलझाने के लिए । 'यदि मैं सेठ को वैकुंठ में नहीं ले गया तो भगवान के आगे मेरी हँसी होगी, मेरी प्रतिष्ठा की हानि होगी...।' स्वयं वैकुंठ में जाना फिर भी सहज है, दूसरों को वैकुंठ में ले आना बड़ा दुष्कर कार्य है! ___ नारदजी वास्तव में फँस गये थे। ऐसे व्यक्ति से उनका पाला पड़ा था कि जो दंभी था! बाहर से भक्त का दिखावा करता था, भीतर से पूरा संसार का रागी था। नारदजी ने बाह्य दिखावे को सच्चा मान लिया और फँस गये! दुनिया में जो मनुष्य किसी के फंदे में फँसते हैं वे बाह्य दिखावे के चक्कर में ही फँसते हैं। हालाँकि दुनिया में ही ज्यादातर लोग स्वार्थवश, लोभवश फँसते हैं, लेकिन नारदजी को ऐसा कोई स्वार्थ नहीं था, परमार्थ था। परमात्मभक्त को मुक्ति दिलाने का भाव था। परन्तु बात पकड़ी गई! ___ नारदजी ने सेठजी की एक वर्ष की मोहलत मान्य कर ली और सीधे वैकुंठ चले गये। भगवान ने कहा : 'अब छोड़ दो उस सेठ को नारदजी, वह आनेवाला नहीं इधर! परन्तु नारदजी ने नहीं माना। उन्होंने सेठ को वैकुंठ में लाने का संकल्प दोहरा दिया। नारदजी भगवान की बात मानने को तैयार नहीं थे! जिद ऐसी ही वस्तु है। जिद के भीतर 'अहं' बैठा हुआ होता है। अहंकार मनुष्य को कितना गिरा देता है? जमाली मुनि को किसने गिराया था? भगवान महावीर जो कि सर्वज्ञ थे, वीतराग थे, उनकी बात भी जमाली ने नहीं मानी! जानते हो न जमाली की वह घटना? अहंकार आग है : भगवान महावीर की पुत्री प्रियदर्शना की शादी राजकुमार जमाली के साथ हुई थी। बाद में दोनों ने भगवान के चरणों में चारित्र्यधर्म स्वीकार कर लिया था और भगवान के श्रमणसंघ में सम्मिलित हो गए थे। जमाली मुनि ग्यारह अंगों के वेत्ता बन गए थे। एक दिन जमाली अस्वस्थ हो गए, बीमार हो गए। शाम को प्रतिक्रमण करने के बाद दूसरे श्रमण जमाली मुनि का संस्तारक बिछा रहे थे। जमाली मुनि ने पूछा : 'क्या संस्तारक तैयार हो गया?' श्रमण For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy