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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४० प्रवचन-३ भगवान का नाम गूंज रहा है, मुझे संसार में क्षण का भी चैन नहीं है। यदि मुझे वैकुंठ में स्थान मिल जाय... अहा प्रभो! मेरी भव भव की फेरी मिट जाय । कृपा करो देवर्षि! वैकुंठ के अलावा मुझे कुछ भी नहीं चाहिए।' ___ नारदजी सेठ की बात सुनकर प्रसन्न हो गए। क्यों न होते प्रसन्न? आप ऐसी बात करो तो मैं भी प्रसन्न हो जाऊँ! कैसी मज़ेदार बात की जीवराज सेठ ने? कितना विनय? आता है कुछ ऐसा? भले हृदय के शुद्ध भाव से न सही; अभिनय करना भी आता है? कोई साधुपुरुष आपकी दुकान के आगे से गुजर रहे हों, आप देख लो, क्या दुकान से नीचे उतरते हो? विनय-विवेक के बिना धर्म अशक्य : __ सभा में से : साधुमहाराज की बात छोड़ो, हम तो भगवान की रथयात्रा जा रही हो, तो भी दुकान से नीचे नहीं उतरते! महाराजश्री : धन्यवाद! परमात्मा का भी विनय नहीं करते, फिर साधुपुरुषों का तो करोगे ही कैसे? विनय और विवेक के बिना तो धर्म हो ही नहीं सकता। भगवान महावीर स्वामी ने कहा है : 'विणयमूलो धम्मो ।' धर्म का मूल विनय है। धर्म का प्रारंभ विनय से होता है। परमात्मा का विनय और साधुपुरुषों का विनय करना तो दूर रहा, क्या माता-पिता का विनय करते हो? बड़ों का विनय करते हो? दिनमें तीन बार माता-पिता के चरणों में नमन करते हो? 'त्रिसन्ध्यं नमनक्रिया' प्रातः, मध्याह्न और शाम-तीन संध्या में माता-पिता को नमन करना चाहिए, यह जानते हो? कैसे करोगे नमन? नम्रता के बिना नमन नहीं हो सकता। नम्रता है नहीं। अभिमान-मिथ्या अभिमान काफी बढ़ गया है। सभा में से : नमन करने में शरम आती है! महाराजश्री : किसको? आपको या आपके बच्चों को? आएगी शरम बच्चों को तो। क्योंकि आप लोगों ने-माता-पिताओं ने आदर्श नहीं दिया अपने बच्चों को | यदि आपके बच्चे आपको आपके माता-पिता को नमन करते हुए देखते, तो वे बच्चे आपको अवश्य नमन करते! आप लोगों ने आदर्श ही नहीं दिया । दिया है आदर्श? हाँ, दिया है आदर्श अपमान करने का, तिरस्कार करने का और गालियाँ बकने का' | ध्यान रखो, आपके माता-पिता के साथ आप जैसा व्यवहार करोगे, आपके बच्चे आपके साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे। थोड़ा अधूरा था, तो आपने काम पूरा कर दिया बच्चों को कॉन्वेन्ट स्कूलों में भेजकर For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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