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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-३ आठ-दस तिलक चंदन के लगाकर, सेठ दुकान की गद्दी पर बैठते । जब कोई ग्राहक न हो, हाथ में रुद्राक्ष की माला लेते और भगवान का नाम जपते। ___ एक दिन की बात है। नारदजी का विमान इस नगर के ऊपर से गुजर रहा था। नारदजी को नगर देखने की इच्छा हुई। उन्होंने विमान को उस मैदान में उतारा । विमान को छोड़कर नारदजी शहर देखने चले। मैदान के किनारे ही जीवराज सेठ की दुकान थी। दुकान पर सेठ जीवराज हाथ में रुद्राक्ष की माला लिए राम-नाम जप रहे थे। नारदजी ने सेठ को देखा, वे देखते ही रह गए! 'ओहो! कैसा भक्त जीव है...!' नारदजी ने सेठ के ललाट में चंदन के आठ-दस तिलक देखे, हाथ में माला देखी... बस, भक्त मान लिया सेठ को | नारदजी दुकान के पास आए । सेठ ने नारदजी को देखा | बड़े खुश हो गए। दुकान से नीचे उतरे और नारदजी के चरणों में साष्टांग दंडवत किया। नारदजी ने सेठ को अपने दोनों हाथों से उठाया। सेठ ने हर्ष के आँसू बहाए और कहने लगे : 'हे देवर्षि, आप मेरे द्वार पर पधारे, धन्य बन गया मैं! कल्पवृक्ष मेरे आँगन में आया, कामघट-कामधेनु मिल गए मुझे! पधारिए मेरी इस झोंपड़ी में गुरुदेव!' नारदजी तो पानी-पानी हो गए सेठ के विनयभाव से, सेठ के भक्तिपूर्ण वचनों से | नारदजी ने सेठ की दुकान में प्रवेश किया। सेठ ने नारदजी को बढ़िया गलीचे पर बिठाया और स्वयं दो हाथ जोड़कर खड़े रहे | नारदजी ने कहा : 'सेठ, तुम इस संसार में कैसे रह गए? तुम्हारे जैसे भक्त को तो वैकुंठ में स्थान मिलना चाहिए! सेठ ने कहा : 'प्रभु, मेरे ऐसे भाग्य कहाँ कि मुझे वैकुंठ में स्थान मिले? अभागा हूँ प्रभो!' ___ 'नहीं, नहीं सेठ, ऐसा नहीं चल सकता। भगवान तुम्हारे जैसे भक्त को वैकुंठ में स्थान नहीं देंगे तो किसको देंगे? मैं वैकुंठ में जाकर भगवान को कह देता हूँ कि 'फलाँ शहर के उस भक्त को शीघ्र वैकुंठ में प्रवेश देने की कृपा करो।' भगवान दयालु हैं, वे शीघ्र प्रवेश दे देंगे। चलोगे न वैकुंठ में सेठ?' ___ नारदजी ने जीवराज सेठ के सामने देखा | जीवराज सेठ ने नारदजी के चरणों में अपना सिर लगाकर कहा : 'भगवंत! क्या बताऊँ ? मेरे रोम-रोम में For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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