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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२४ ३२८ लोगों के लिए यह भावना काफी उपकारी हैं वैसे हम लोगों के लिए भी यह भावना अत्यंत आवश्यक है। हम लोग साधु हैं, फिर भी इन भावनाओं के अभाव में हम भी आन्तर शान्ति का अनुभव नहीं कर सकते। प्रतिदिन... प्रतिक्षण इन भावनाओं की अपने मन को आवश्यकता है। भले ही हम विद्वान हो, पंडित हो, भावनाओं के बिना शान्ति का अनुभव दुर्लभ है। 'शान्तसुधारस' ग्रन्थ में उपाध्याय श्री विनयविजयजी ने स्पष्ट कहा है : 'स्फुरति चेतसि भावनया विना न विदुषामपि शान्तसुधारसः। विद्वत्ता और बात है, भावना और बात है। भावनाशून्य विद्वत्ता आन्तरिक आनन्द, आन्तरिक प्रसन्नता प्रदान नहीं कर सकती । विद्वत्ता का संबंध ज्यादातर दिमाग के साथ है, भावना का संबंध ज्यादातर दिल के साथ है, हृदय के साथ है। समग्र जीवसृष्टि के प्रति अपना हृदय मैत्री, करुणा, प्रमोद और माध्यस्थ्य - इन चार भावनाओं से परिपूर्ण रहे - बस, सदैव प्रसन्नता ही प्रसन्नता है। कभी अशान्ति नहीं, संताप नहीं। एक ही रास्ता है : भावना का : दूसरा कोई उपाय नहीं है शान्ति पाने का, यह बात सोच लेना। अलबत्ता, अनित्यादि बारह भावनाओं का चिंतन-मनन भी आवश्यक है ही। यों सोचा जाये तो अनित्य, अशरण, एकत्व, अन्यत्व और संसार वगैरह भावनाएँ मैत्री आदि चार भावनाओं की पूरक भावनाएँ हैं, सहायक भावनाएँ हैं। इसलिए उन अनित्यादि भावनाओं का भी प्रतिदिन अभ्यास करना चाहिए। आज उन भावनाओं को संक्षेप में बताता हूँ : बारह भावनाएँ : अनित्य-भावना : प्रियजनों का संयोग, वैभव, वैषयिक सुख, शरीर का आरोग्य, यौवन, शरीर और जीवन... यह सब अनित्य है। यानी सदा काल टिकनेवाली नहीं हैं। संयोग का वियोग होता ही है, इसलिए कोई भी संयोगसंबंध तीव्र राग से मत करो। किसी भी वैषयिक सुख से प्रगाढ़ प्रीति मत करो। यौवन का अभिमान मत करो, शरीर का भरोसा मत करो... जीवन का मोह मत रखो। अशरण-भावना : जन्म, वृद्धावस्था और मृत्यु के भय से व्याकुल, व्याधि और वेदनाओं से भरपूर इस संसार में जिनवचन के अलावा दूसरा कोई शरण नहीं है। दूसरा कोई बचानेवाला नहीं हैं : दूसरा कोई सहारा नहीं है। दुःखों For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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