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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२२ २९६ मान लेते हैं कि मैं भी कुछ हूँ! I am also Something आगे बढ़कर | am everything मैं सब कुछ हूँ! ऐसा मिथ्याभिमान उभरता है। मिथ्याभिमानी को मानसिक सुख नहीं होता है, शांति नहीं होती है। वह अपने आपको बहुत ऊँचा बनाये रखने में और ऊँचापन का प्रदर्शन करने में इतना उलझा हुआ रहता है कि उसके लिए स्वस्थता और प्रसन्नता स्वप्न भी नहीं बन सकती। इसलिए कहता हूँ कि मिथ्याभिमान का त्याग करो। अपने आपका ऊँचा खयाल छोड़ दो। ऐसा सोचो कि I am nothing मैं कुछ भी नहीं हूँ | मेरा मात्र अस्तित्व है, 'मैं हूँ' इतना ही, मेरा व्यक्तित्व कुछ भी नहीं है! __ इस चिन्तन में एक सावधानी रखना 'मेरा व्यक्तित्व कुछ भी नहीं है।' इस विचार में दीनता नहीं आनी चाहिए। निराशा नहीं आनी चाहिए। मेरा व्यक्तित्व कुछ भी नहीं...' ऐसा रोते-रोते नहीं बोलने का । तत्त्वज्ञानी बनकर स्वस्थ चित्त से सोचने का है। महापुरुषों की अपेक्षा से सोचने का है। जब हम अपना व्यक्तित्व भूल जायेंगे, तब कोई अपना अविनय करेगा, अपने साथ औद्धत्यपूर्ण व्यवहार करेगा, तो उसके प्रति गुस्सा नहीं आएगा। उसके प्रति द्वेष या तिरस्कार नहीं उभरेगा। बस, यही तो माध्यस्थ्य-भावना है। कर्मपरवशता का चिंतन करते रहो : संसार में सभी जीव कर्मपरवश हैं, सभी जीव के अपने अपने कर्म होते हैं, उन कर्मों के अनुसार प्रत्येक जीवात्मा अच्छा या बुरा आचरण करती है। जीव स्वतंत्र तो है ही नहीं! फिर उस पर गुस्सा क्यों करना! जीव की कर्मपरवश स्थिति का चिंतन करते रहो। __ जब कभी आपका स्नेही, स्वजन, मित्र या दूसरा कोई, अनुचित वर्तन करता हो, अभद्र व्यवहार करता हो, अविनय से पेश आता हो, तब आप उसके प्रति तिरस्कार नहीं करना, गुस्से से बौखलाना नहीं। आपके काफी समझाने पर भी, काफी उपदेश देने पर भी वह सुधरता नहीं हो, अपनी राह छोड़ता न हो, गलत कार्यों का त्याग नहीं करता हो, तो आप मौन रहिए | बोलने से कोई फायदा नहीं है। आपके मन में द्वेष होगा, तिरस्कार की भावना होगी और आप बोलते जाओगे तो आपकी भाषा कर्कश-कठोर बन जायेगी। सामनेवाला मनुष्य, जो कि अविनीत उद्धत और असंयमी है, आपकी कठोर वाणी से ज्यादा भड़केगा। ज्यादा खराब काम करेगा। जान-बूझकर, आपको परेशान करने के काम करेगा। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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