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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-२१ २७९ रखते हैं | समय का उनको ज्ञान होता है। शास्त्रों का उनको अच्छा ज्ञान होता है। प्रज्ञावंत होते हैं आचार्य | ऐसे आचार्य ही जैनशासन की प्रभावना दुनिया में कर सकते हैं। जो मात्र नाम के आचार्य होते हैं वे तो प्रभावना नहीं, जैनशासन की विडंबना करवाते हैं। आचार्यपद की शान को नष्ट करते हैं। आजकल अपने दुर्भाग्य से अनुशासनहीनता फैल गई है जिनशासन में। अनुशासनहीनता की वजह से अनेक दोष प्रविष्ट हो ही जाते हैं। ___ हरिभद्र पुरोहित एक ऐसे महान जैनाचार्य के पास पहुंचे थे कि जो विशिष्ट ज्ञानी थे और करुणा के सागर थे। उन्होंने बड़े प्रेम से विद्वान पुरोहित के सामने चारित्र्य-जीवन का प्रस्ताव रख दिया। ज्ञान की तीव्र पिपासावाले पुरोहित को आचार्यदेव की कोई भी शर्त मंजूर थी। संसार के वैषयिक सुखों की स्पृहा से भी बलवती स्पृहा थी ज्ञानप्राप्ति की! ज्ञानप्राप्ति के लिए वैषयिक सुखों का त्याग करना उनके लिए आसान था! वैषयिक सुखों के लिए ज्ञानप्राप्ति का अवसर खो देना, उनके लिए असंभव था, आत्मघात जैसा था! कृतज्ञभाव : मौलिक योग्यता : __ हरिभद्र पुरोहित हरिभद्रमुनि बन गये और उन्होंने जैनदर्शन का दिन-रात अध्ययन किया। अध्ययन में उनकी तल्लीनता और प्रसन्नता बढ़ती ही गई। परमात्मा जिनेश्वरदेव के प्रति, उनके द्वारा प्रकाशित द्वादशांगी के प्रति, धर्म के प्रति अपूर्व आदरभाव जाग्रत हुआ। प्रमोदभाव से उनका हृदय भर गया। परमात्मा के और परमात्मा के धर्मशासन के उन्होंने बहुत गुण गाए | इसमें भी, साध्वी याकिनी महत्तरा को तो वे जीवन में कभी नहीं भुला पाए। अपनी माता के रूप में उन्होंने अपने अनेक ग्रन्थों में उनका उल्लेख किया है | उपकारी के प्रति कृतज्ञभाव महान आत्मा की मौलिक योग्यता होती है। सभा में से : कृतज्ञभाव और प्रमोदभाव एक ही है या भिन्न? महाराजश्री : दोनों भाव भिन्न हैं। प्रमोदभाव तो सभी पुण्यशाली और गुणवान जीवों के प्रति होता है, जब कि कृतज्ञभाव उपकारी जीवों के प्रति होना चाहिए। जिन-जिनका अपने ऊपर उपकार हो, छोटा या बड़ा उपकार हो, उनके प्रति कृतज्ञभाव होना चाहिए। प्रमोदभाव तो सभी जीवों के प्रति कि जो पुण्यशाली हैं, गुणवान हैं, होना चाहिए | आपसे जो ज्यादा सुखी हैं, उनके प्रति और आप से जो ज्यादा गुणवान हैं, उनके प्रति प्रमोदभाव होना चाहिए। सभा में से : हमसे जो ज्यादा सुखी हैं, उनके प्रति प्रमोदभाव-प्रेमभाव For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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