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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- १७ २२४ बरतनी चाहिए : जीवद्वेषी और गुणद्वेषी लोगों के सामने किसी की प्रशंसा नहीं करना! वे लोग तो परनिन्दा सुनकर ही राजी होते हैं। हालांकि गुणानुरागी गुणप्रेमी मनुष्य के मुँह से प्रशंसा के शब्द निकल ही जाते हैं ! भावोल्लास, भावातिरेक में यह खयाल ही नहीं रहता कि सामने कौन है? यूँ तो इन्द्र अपने अवधिज्ञान से देवों के मन के विचार भी जान सकता था, परन्तु उसने 'अवधिज्ञान' का उपयोग ही नहीं किया, कैसे करता उपयोग? उसके हृदय में भगवान महावीर के प्रति अपूर्व भक्तिराग उमड़ रहा था । वह अभागा देव जिसका नाम संगम था, उसके मनोभाव इन्द्र को ज्ञात नहीं हुए । संगमदेव ने महावीर के सत्त्व की कसौटी करने का निर्णय कर लिया । संगम, भगवान महावीर को मात्र एक मनुष्य के रूप में देखता है। भगवान महावीर की देहाकृति को ही देखता है । 'मानवदेह में देव से भी ज्यादा बलवान आत्मा हो सकती है,' यह ज्ञान उसको नहीं है। हो भी कैसे ? वह स्वयं देव है । और 'मनुष्य से देव ज्यादा बलवान होता है,' यह कल्पना उसके मन में दृढ़ हुई है। वह नहीं जानता था कि शारीरिक बल की अपेक्षा मनोबल ज्यादा महत्त्व रखता है। मनोबल की अपेक्षा आत्मबल काफी ज्यादा महत्त्व रखता है। संगम देव था, देव के पास मनुष्य से ज्यादा शारीरिक बल होता है, परन्तु मानसिक बल देव से ज्यादा मनुष्य में हो सकता है। उच्चतम मनोबलवाले मनुष्यों के चरणों में देव सेवक बनकर रहते हैं। मंत्रशक्ति से जिसका मनोबल उच्चकोटि का बनता है, देव भी उनको नमस्कार करते हैं! बड़े-बड़े मांत्रिक भी अनन्त आत्मशक्ति के मालिक तीर्थंकर परमात्मा के चरणों में नतमस्तक बनते हैं। इंद्र शरमिन्दा हो गया न! संगम भगवान महावीर की आत्मशक्ति से अपरिचित था । वह तो अपनी ही शक्ति के ऊपर मुस्तैद था। 'मैं जाकर अभी चन्द क्षणों में महावीर को विचलित कर देता हूँ।' उसने इन्द्रसभा में अपना निर्णय घोषित कर दिया। महावीर को ध्यानभ्रष्ट करने का अपना संकल्प जाहिर कर दिया । इन्द्र और पूरी देवसभा स्तब्ध रह गई। 'ऐसी प्रतिक्रिया आएगी, यह कल्पना किसी को नहीं थी । संगम के अहंकारपूर्ण वचन सुनकर, भगवान महावीर के प्रति तिरस्कारपूर्ण वचन सुनकर इन्द्र काफी रोषायमान हुआ... परन्तु यदि वह संगम को रोकता है तो संगम उसका दूसरा गलत अर्थ करेगा : 'देखो अपने भगवान की शक्ति For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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