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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir २१८ प्रवचन-१६ नमिराजा को समाचार मिल गए कि 'हाथी सुदर्शनपुर में राजा चन्द्रयश के पास है।' उसने अपने दूत को चन्द्रयश के पास भेजा । दूत ने आकर निवेदन किया कि 'आप जिस श्वेत हस्ति को पकड़कर लाए हो, वह हाथी मिथिलापति का है, आप हाथी हमें वापस सौंप दें।' चन्द्रयश ने कहा : 'वीरभोग्या वसुन्धरा! ऐसे हाथी नहीं मिलेगा। मैं जंगल में से पकड़कर लाया हूँ, ऐसे दे देने के लिए नहीं लाया हूँ उसे!' भाई-भाई युद्ध में आमने-सामने : दूत ने मिथिला जाकर नमिराजा को निवेदन किया। नमि बौखला उठा। उसने तुरंत ही युद्ध की भेरी बजवाई। पूरी सेना के साथ उसने सुदर्शनपुर की तरफ प्रयाण कर दिया। चन्द्रयश ने भी पूरी तैयारी कर ली थी युद्ध की। उसने नगर के द्वार बंध करवा दिए और किले के ऊपर शस्त्रसज्ज सैनिक जमा दिए | स्वयं शस्त्रसज्ज बन कर युद्ध के लिए तैयार हो गया। दोनों सहोदर हैं! परन्तु नमिराजा चन्द्रयश को नहीं जानता है! चन्द्रयश नमिराजा को नहीं जानता है कि 'यह मेरा लघुबंधु है!' दोनों भाई एक हाथी के निमित्त युद्ध करने तत्पर हो गए हैं! साध्वी के दिल में भाव करुणा : मिथिला में युद्ध के समाचार घर-घर फैल गये थे। साध्वीजी सुव्रता को भी समाचार मिले। 'ओह, यह क्या हो गया? दोनों भाई आपस में लड़ेंगे? उनको मालूम ही नहीं है कि वे दोनों सहोदर हैं। युद्ध कितना खराब है। जीवों की घोर हिंसा होगी। भाई-भाई के बीच वैर बढ़ेगा।' साध्वी का हृदय करुणा से द्रवित हो गया । 'नहीं नहीं, मैं युद्ध नहीं होने दूंगी | मैं जाऊँगी युद्धमैदान पर और समझाऊँगी दोनों पुत्रों को! मेरी बात वे नहीं टालेंगे। मैं अपना परिचय दूंगी। साध्वीजी तैयार हो गई युद्धमैदान पर जाने के लिए | उसने सुदर्शनपुर का रास्ता लिया। उस तपस्विनी साध्वी के मन में अनेक प्रकार के विचार उमड़ते हैं। 'एक हाथी के लिए ये युद्ध करेंगे? हाथी तो निमित्त बन गया। युद्ध है 'अहं' और 'मम' का। मोह राजा का यह प्रभावशाली मंत्र है! इस मंत्र के प्रभाव से जीव मोहमूढ़ बन जाता है। कर्तव्य-अकर्तव्य का भेद भूल जाता है। चन्द्रयश ने हाथी नहीं दिया तो नमि को क्या हाथियों की कमी थी? परन्तु 'मेरा हाथी वह क्यों नहीं देता है?' क्या हाथी उसके साथ परलोक में जाएगा? क्या वह हाथी कभी नहीं मरेगा? परन्तु यह विचार उन लड़कों को For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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