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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१६ २१७ __'पुत्रदर्शन की अब कोई आकांक्षा नहीं रही है। आपके कहे अनुसार वह कुशल है, बस, अब मेरे हृदय में कोई भी सांसारिक सुख की चाह नहीं है, मैं इस साध्वीजी की शरण लेना चाहती हूँ | संयम स्वीकार करके आत्मकल्याण करना चाहती हूँ।' देव ने मदनरेखा को प्रणाम किया और अपने स्थान चला गया। इधर मदनरेखा ने चारित्र्यधर्म अंगीकार कर लिया, उनका नाम रखा गया 'सुव्रता'| सुव्रता साध्वी ने दुष्कर तपश्चर्या शुरू कर दी। आत्मसाधना में लीन हो गई। सर्व जीवों के प्रति अनुग्रहसभर बन गई। साध्वी-जीवन यानी सभी जीवों को अभयदान देने का जीवन | सबसे मैत्रीभाव का जीवन! मदनरेखा का पुत्र मिथिलापति बनता है : उधर मिथिलापति पद्मरथ राजा ने मदनरेखा के पुत्र का नाम 'नमि' रखा था, क्योंकि जब से वह पुत्र राजमहल में आया था, तब से राजा पद्मरथ के चरणों में अनेक राजाओं ने अपने मस्तक नमाये थे-झुकाये थे! समर्पण किया था। राजा ने नमिकुमार को शस्त्रकला और शास्त्रकला में पारंगत बनाया। जब कुमार यौवन में आया, पद्मरथ ने एक हजार आठ राजकन्याओं के साथ नमिकुमार की शादी कर दी। अनेक सुखभोगों के बीच राजकुमार का जीवन व्यतीत होता है। राजा पद्मरथ ने अपनी उत्तरावस्था आत्मकल्याण की साधना में व्यतीत करने का निर्णय किया । नमिकुमार का राज्याभिषेक कर दिया और स्वयं चारित्र्यधर्म स्वीकार कर के घोर तपश्चर्या करने लगे। सभी कर्मों का क्षय कर, उन्होंने परम पद पा लिया! मिथिलापति के हाथी को राजा चन्द्रयश पकड़ता है : इधर सुदर्शनपुर में, मणिरथ की सर्पदंश से मृत्यु होने के पश्चात मंत्रीवर्ग ने युगबाहु के पुत्र चन्द्रयश का राज्याभिषेक कर दिया था। चन्द्रयश अपने मंत्रीमंडल की सहायता से अच्छा राज्य चलाता है। एक दिन मिथिलापति नमिराजा का पट्टहस्ती आलान-स्तम्भ उखाड़कर भागा... विन्ध्यावटी की तरफ दौड़ने लगा। जब वह श्वेत हाथी सुदर्शनपुर के प्रदेश में से गुजरता था, सुदर्शनपुर के लोगों ने देखा, चार दंतशूलवाला सुन्दर हस्तिरत्न देख कर, लोगों ने जाकर राजा चन्द्रयश को निवेदन किया। चन्द्रयश ने जाकर हाथी को वश कर लिया और पकड़कर अपने नगर में ले आया । अपनी हस्तिशाला में बांध दिया। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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