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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१५ १९९ मदनरेखा रास्ता ढूँढ़ती है : मदनरेखा मणिप्रभ की एक-एक बात ध्यान से सुनती है। उसको तो अपना मार्ग निकालना है। किसी भी तरह अपने शील की रक्षा करनी है। मणिप्रभ से कहा : 'अच्छा, तो तुम एक मुनि-पिता के पुत्र हो । मुझ पर एक दया कर दो। मेरा पुत्र मुझे ला दो।' दो हाथ जोड़कर, सर झुकाकर उसने अनुनय किया। ___ मणिप्रभ राजा ने आँखें बन्द कीं, ध्यान लगाया। कुछ समय में ही आँखें खोलकर उसने कहा : ___ 'जिस जंगल में तेरा पुत्र सोया था, उस जंगल में मिथिलापति राजा पद्मरथ अकस्मात पहुँच गया... तेरे पुत्र का रुदन सुनकर, राजा ने उसको देखा और उठा लिया, अपनी रानी पुष्पमाला को दे दिया है। मदनरेखा के श्वास स्तंभित हो गए। उसने पूछा : 'तुमने कैसे यह सब जान लिया? मुझे आश्वासन देने हेतु तो तुम ऐसी झूठी बात नहीं कह रहे हो न?' ___ 'मैंने झूठी बात नहीं कही है। 'प्रज्ञप्तिदेवी' से पूछकर मैंने यह बात बताई है। रानी पुष्पमाला तेरे पुत्र को अपना पुत्र मानकर प्रेम से उसका पालन करेगी। तू अब पुत्र की चिन्ता छोड़ दे | तू मेरी बात मान ले। मेरे नगर में तुझे ले चलता हूँ। मेरे अन्तःपुर में तेरा श्रेष्ठ स्थान होगा।' मणिप्रभ मदनरेखा के पास सरकने लगा था। मदनरेखा उससे दूर रहने का प्रयत्न करती थी। मदनरेखा ने सोचा : 'बुद्धिपूर्वक कुछ रास्ता निकालना चाहिए। तो ही शीलरक्षा हो सकती है। उसके मन में एक उपाय सूझा । उसने मणिप्रभ कहा : मदनरेखा की बुद्धिमत्ता : __'मेरी एक इच्छा पहले पूर्ण करो, मुझे नंदीश्वरद्वीप ले चलो, मैं वहाँ शाश्वत् जिनमंदिरों के, शाश्वत् जिनप्रतिमाओं के दर्शन-पूजन करना चाहती हूँ... बाद में जैसे भी तुम कहोगे, वैसे कर लूँगी।' मणिप्रभ ने मदनरेखा की बात मान ली। मदनरेखा आश्वस्त हुई। स्वस्थ और धीर चित्त में ही अच्छे उपाय सूझते हैं। अस्वस्थ, चंचल और अधीर चित्त तो उलझ जाता है | भयभ्रांत हो जाता है, कर्तव्यमूढ़ बन जाता है। मदनरेखा की धीरता कितनी अद्भुत होगी। 'कालक्षेप कर दूँ, बचने का रास्ता मिल जाएगा। अभी यदि इनकार कर दूंगी तो आक्रामक बनेगा, परिणामस्वरूप मुझे आत्महत्या ही करनी पड़ेगी।' For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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