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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९८८ प्रवचन-१५ मदनरेखा का अपहरण : मदनरेखा सरोवर के किनारे स्नान कर रही थी, इतने में आकाशमार्ग से एक विमान आता है, विमान में से एक तेजस्वी राजपुरुष उतरा, स्नानरत मदनरेखा को उठाया और जहाज में बिठाकर शीघ्र आकाशमार्ग से चल दिया। चन्द क्षणों में यह घटना कल्पनातीत घटना बन गई! मदनरेखा स्तब्ध रह गई! पति की आकस्मिक हत्या, जंगल में पुत्र का जन्म और स्वयं का अपहरण... 'क्या हो रहा है?' वह समझ नहीं सकती है। शीलरक्षा हेतु महल छोड़कर जंगल में आई तो जंगल में से अपहरण हो गया! उसके मन में नवजात शिशु की चिन्ता है। उसने उस राजपुरुष से कहा : 'हे वीरपुरुष! मध्यरात्रि के समय मैंने पुत्र को जन्म दिया है। पुत्र को सरोवर के पास वृक्ष-घटा में सुलाकर मैं स्नान करने और वस्त्र धोने सरोवर पर आई थी। मेरे बच्चे का क्या होगा? या तो कोई वन्यपशु उसको मार देगा अथवा दुग्धपान के बिना वह स्वयं मर जाएगा| हे राजपुरुष मुझ पर दया करो, मेरे बच्चे के पास मुझे ले जाओ अथवा बच्चे को यहाँ ले आओ।' मदनरेखा की आँखें आँसुओं से भर गई। परन्तु दुनिया में सभी लोग थोड़े ही सन्त होते हैं! मदनरेखा का अद्भुत रूप इस राजपुरुष को भी कामांध बना देता है। उसकी आँखें विकारी बन गई हैं। मदनरेखा के आँसू उस पर कोई असर नहीं करते हैं। तीव्र राग या तीव्र द्वेष में मनुष्य करुणाविहीन बन जाता है। दूसरों के प्रति सहानुभूति जगती ही नहीं। मदनरेखा की विवशता देखकर वह कहता है : ___ 'तू पहले मुझे पति मान ले! बस, फिर तेरी हर इच्छा को पूर्ण करने मैं तैयार हूँ।' मदनरेखा काँप उठी। परन्तु धीरता धारण कर उसने पूछा : 'तुम कौन हो? तुम्हारा परिचय क्या है?' उस पुरुष ने कहा : वैताढ्यपर्वत पर 'रत्नवह' नाम का नगर है। वहाँ मणिचूड़ नाम के राजा थे। मैं उनका पुत्र मणिप्रभ हूँ। पिताजी ने मेरा राज्याभिषेक कर दिया और उन्होंने चारित्र्यधर्म अंगीकार कर लिया। अभी वे महामुनि 'नन्दीश्वरद्वीप' पर बिराजते हैं, वहाँ के शाश्वत् जिनमंदिरों के, शाश्वत जिनप्रतिमाओं के दर्शन करने वे गए हैं। मैं भी पिता मुनिराज के दर्शन करने जा रहा था। रास्ते में मैंने तुझे देखा ।' For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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