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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १९५ प्रवचन-१५ . जिसका दिल दया और करुणा से भरा हुआ है, जिसके हृदय में से वैर वृत्ति ही मर मिटी है, वैसे व्यक्ति के पास आनेवाला हिंसक जानवर और हिंसक आदमी भी अहिंसक हो जाता है। देवलोक में जानेवाले जीव वहाँ जाकर देवलोक के दिव्य । सुखभोग में इतने तो डूब जाते हैं कि मनुष्य जन्म के स्नेहीस्वजनों को तो वे भूल ही जाते हैं। अरे, अपने उपकारी को भी विस्मृत कर देते हैं। उपकारी के प्रति स्नेह एवं सद्भाव हमेशा बनाए रखना, यह एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण गुण है। अलबत्ता, आजकल की दुनिया में यह गुण दुर्लभ है...विरल है। उपकारी-मैत्री धर्म आराधना की आधारशिला है, बुनियादी तत्त्व है। . उपकारी के प्रति द्वेष रखना...या नफरत करना, इससे = बढ़कर दूसरा पाप कौनसा होगा? प्रवचन : १५ महान श्रुतधर आचार्यदेव श्री हरिभद्रसूरीश्वरजी धर्मतत्त्व का स्वरूप समझा रहे हैं। इस आचार्यश्री का समझाने का ढंग ही निराला है। १४४४ धर्मग्रन्थों की रचना करनेवाले महान शास्त्रकार तो थे ही, परन्तु बहुत बड़े मनोवैज्ञानिक भी थे! अद्वितीय तार्किक थे! इनकी बात 'क्लासिकल' होगी! हर बात 'सायकोलॉजिकल' होगी, हर बात 'लॉजिकल' होगी! कैसी सर्वतोमुखी प्रतिभा होगी इन महामना योगीश्वर की! आपकी क्रिया भले शास्त्रीय हो, विधिपूर्वक हो परन्तु आपका हृदय यदि मैत्री, प्रमोद, करुणा और माध्यस्थ-भाव से भरा हुआ नहीं है तो आपकी वह शास्त्रसंमत क्रिया भी 'धर्म-क्रिया नहीं कहलाएगी! धार्मिक बनने के लिए आपका हृदय मैत्रीसभर होना जरूरी है! करुणा से गीला होना आवश्यक है! प्रमोद से पुलकित होना अनिवार्य है! माध्यस्थ्य-भाव से मुखरित होना आवश्यक है! For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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