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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ १८६ प्रवचन-१४ आदमी क्या जानवर से भी गया बीता है? : भगवान महावीर, जो करुणा की साक्षात मूर्तिरूप थे, जिनके समवसरण में हिंसक पशु भी हिंसा के भाव से मुक्त होकर बैठते थे और महावीर का उपदेश सुनते थे! उन महावीर स्वामी के ऊपर कभी भी किसी पशु ने हमला नहीं किया था...परन्तु एक मनुष्य ने हमला कर दिया था! वह भी कौन था, जानते हो न? महावीर ने जिस पर अनेक बार अनेक उपकार किये थे! वह था गोशालक! अपने परम उपकारी गुरु भगवान महावीर के ऊपर 'तेजोलेश्या' से हमला कर दिया था। आदमी पशु से भी गया बीता है, यदि उसका चित्त निरा अशुद्ध है। उपकारी का द्वेषी-गोशालक : भगवान महावीर ने गोशालक को कई जगह मौत से बचाया था । गोशालक भी अपने को महावीर का शिष्य बताता हुआ फिरता था, क्योंकि इससे उसको अच्छा भोजन मिलता था! परन्तु उसके अपलक्षण कम नहीं थे! अपलक्षणों की वजह से कई स्थानों पर लोगों द्वारा बुरी तरह पीटा गया था वह! अन्ततोगत्वा, गोशालक महावीर का ही विद्वेषी और विद्रोही बन गया था। जिस 'तेजोलेश्या' की शक्ति भगवान ने उसको दी थी, गोशालक ने वही तेजोलेश्या भगवान पर डाली थी। उसी तेजोलेश्या से गोशालक मरा था। बुरी तरह मरा था। घोर वेदनाओं को सहता सहता मरा था। ऐसे प्रचंड पापकर्म उसने बाँधे हैं कि उसको अनेक बार सातों नरक में जाना पड़ेगा। उपकारी के प्रति मैत्रीभावना अवश्य होनी चाहिए | उपकारी के प्रति अपने हृदय ने स्नेह, भक्ति और सद्भाव होना ही चाहिए। किसी का छोटा-सा भी उपकार अपने पर हुआ है, उसको जीवन में कभी भी नहीं भूलना चाहिए । धर्म करनेवालों में क्या इतनी योग्यता नहीं होनी चाहिए? इतनी योग्यता भी न हो, तो क्या वह सर्वज्ञभाषित धर्म की आराधना कर सकता है? कदापि नहीं। कृतघ्न मनुष्य धर्मक्षेत्र में प्रवेश ही नहीं कर सकता। मदनरेखा का चित्त कितना विशुद्ध था। कितना पवित्र था! मणिरथ ने युगबाहु पर तलवार का प्रहार कर दिया, मदनरेखा उस समय मणिरथ के प्रति गुस्सा या क्रोध किये बिना, युगबाहु के प्रति अपना ध्यान केन्द्रित करती है। युगबाहु मदनरेखा का पति था यानी स्वजन था। पति था यानी उपकारी भी था। पति पत्नी को सुख देता है, सुख के साधन देता है इसलिए उपकारी बनता ही है। मदनरेखा युगबाहु को उपकारी के रूप में भी देखती है। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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