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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१४ १८५ जन्म होता है। दुःखी जीवों के प्रति अत्यन्त दया! है न अत्यंत दया? थोड़ीसी तो होगी? या बिल्कुल नहीं? दयाहीन मनुष्य का कोई भी धर्मानुष्ठान 'धर्म' नहीं बन सकता। भले दिखने में वह धर्मानुष्ठान दिखे, वास्तव में वह 'धर्म' नहीं होता। धर्म का आभासमात्र होता है | जानवर भी कृतज्ञ होते हैं : उस मुसाफिर को राजा ने मौत की सजा की थी, उसको राजा ने उस मैदान में धकेल दिया । उधर से सिंह को पिंजरे से छोड़ा गया । छलाँग मारता हुआ सिंह उस मुसाफिर की ओर लपकता है। मुसाफिर तो एक जगह आँखें मूंदकर खड़ा रह गया है। सिंह नजदीक पहुँचा, निकट जाते ही रुक गया, मुसाफिर के शरीर को सूंघने लगा और वापस लौट गया! अपने पिंजरे में चला गया! राजा महल के झरोखें से यह दृश्य देख रहा है, उसको बहुत आश्चर्य हुआ। उसने सैनिकों के द्वारा फिर से सिंह को पिंजरे से बाहर निकलवाया। सिंह पुनः उस आदमी के पास गया...उसका शरीर सूंघा और वापस आ गया! राजा की सांस ऊँची हो गई! ऐसी घटना राजा ने कभी भी पहले देखी नहीं थी। 'सिंह क्यों इस अपराधी को नहीं मार डालता है?' राजा को सिंह के ऊपर गुस्सा भी आ गया! उसने तीसरी बार सिंह को धकेला उस आदमी के सामने | तीसरी बार भी वैसा ही हुआ, सिंह ने उस पुरुष को सूंघा और लौट आया अपने पिंजरे में! राजा ने उस आदमी को अपने पास बुलाया और पूछा : 'तेरे पास ऐसा कोई मंत्र है, तंत्र है.... क्या? जिससे यह सिंह तुझ पर हमला नहीं करता है? क्या वजह है इस बात की?' उस आदमी ने कहा : 'राजन, सिंह मनरहित प्राणी नहीं है, उसको भी मन है। उसके मन में कुछ शुद्धि होती है। वह अपने उपकारी के ऊपर हमला कभी नहीं करेगा। हाँ, उसको फालतू ही छेड़ना नहीं चाहिए।' राजा ने पूछा : 'तो क्या तूने उस पर कोई उपकार किया है?' मुसाफिर ने कहा : 'राजन, कुछ दिन पूर्व जब यह सिंह जंगल में था, उसके पैर में काँटा चुभ गया था, मैंने वह काँटा निकाला था! यह सिंह वही है! उसने मुझे पहचान लिया है! मेरे पर हमला कैसे करेगा? उपकारी के ऊपर स्वार्थी मनुष्य हमला कर देगा, यह सिंह नहीं करेगा कभी!' For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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