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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-१२ १६८ 'महामंत्री, मुझे लीलावती की चिन्ता सता रही है। उस बेचारी का क्या हुआ होगा?' राजा ने महामंत्री के सामने देखा | महामंत्री ने कहा : 'महाराजा, आप धैर्य धारण करें। रानी कुशल ही होंगी! उनके हृदय में धर्म था, धर्म ने उनकी रक्षा की होगी। मैं उनकी खोज करवाता हूँ। परन्तु आप एक कार्य करने की कृपा करें।' राजा ने पूछा : ‘क्या करूँ? तुम कहो वह करने को तैयार हूँ।' महामंत्री ने कहा : 'आप महान् धर्मकार्य करें, जिससे मेरा प्रयत्न सफल बनें और सात दिन में महारानी को हाजिर कर सकूँ।' कौन-सा धर्मकार्य करूँ?' राजा ने पूछा | महामंत्री ने धर्मकार्य बताया : 'महीने में पाँच पवित्र पर्व तिथियाँ आती हैं, उन दिनों में अपने देश में कोई आदमी किसी प्रकार का व्यसन सेवन नहीं करे। सात व्यसनों का निषेध करवा दिया जाए। कोई मांसभक्षण नहीं करे, शराब नहीं पिये, जुआ नहीं खेले, व्यभिचार नहीं करे। कोई चोरी नहीं करे।' राजा ने महामंत्री की सूचना का तुरन्त ही अमल करवाया। रानी लीलावती का कृतज्ञता गुण : महामंत्री ने अपने घर आकर पथमिणी को सारी बात बताई। पथमिणी प्रसन्नचित्त प्रसन्नवदना हो गई। भूमिगृह में जाकर लीलावती को सारी बात कह सुनाई। लीलावती हर्षविभोर बन गई। उसने कहा : 'यह सारा प्रभाव श्री नवकार महामंत्र का है। पंचपरमेष्ठि भगवंतों की परम कृपा से ही यह परिस्थिति पैदा हुई है। मेरे लाख नवकार का जाप पूर्ण होने जा रहा है। पूर्ण हो जाएगा।' पथमिणी ने कहा : 'अब तू महाराजा की पट्टरानी बन जाएगी। तुझे ढेर सारा सुख मिलेगा, परन्तु परमात्मा को और नवकार मंत्र को कभी भी नहीं भूलना। रानी ने कहा : 'पथमिणी, उनको मैं कैसे भूल सकती हूँ? नवकार मंत्र तो मेरे श्वासोश्वास में समा गया है। परमात्मा पार्श्वनाथ तो मेरे परम प्रियतम हैं! मैं स्वर्ण की प्रतिमा बनाऊँगी और प्रतिदिन पूजन करूँगी। मैं कभी मांसभक्षण नहीं करूँगी, रात्रिभोजन का भी त्याग कर दूँगी। और एक बात कहूँ? मैं तेरे उपकारों को कभी नहीं भूलूंगी।' रानी की आँखों में आँसू भर आये। वह पथमिणी के गले लिपट गई। पथमिणी की आँखों से भी आँसू बहने लगे। गुणवानों को गुणीजनों से प्रेम हो जाता है। रानी में कृतज्ञता का श्रेष्ठ गुण था। उसने पथमिणी में अनेक गुण देखे थे। पथमिणी के उपकारों को वह कैसे भूल सकती थी? पथमिणी कहती है : For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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