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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra प्रवचन- १२ बदलते मन का क्या भरोसा ? www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १६७ परिवर्तनशील जीवन में सब कुछ परिवर्तनशील है । मनुष्य के विचार कितने परिवर्तनशील हैं! राजा के विचारों में कैसा परिवर्तन आ गया! महामंत्री का पापकर्म का उदय समाप्त हुआ और सानुकूल संयोग पैदा हो गये। रानी लीलावती का पापोदय समाप्त हुआ और परिस्थिति बदल गई । राजा जब महल में गया, उसके मन में रानी लीलावती का विचार आया । 'मैंने लीलावती के प्रति कैसा घोर अन्याय किया ? वह निर्दोष थी। मैंने कोई तलाश नहीं की कि उसने महामंत्री का वस्त्र क्यों ओढ़ा है? मैंने उसके चरित्र पर शंका की । महामंत्री, कि जो पवित्र महात्मा पुरुष है, उसके विषय में कुशंका की । मैंने कितना गलत सोचा... बेचारी लीलावती कहाँ गई होगी? उसका क्या हुआ होगा?' राजा का हृदय भर आया। घोर दुःख का अनुभव करने लगा । दूसरे को दुःखी करनेवाला सुखी होगा कैसे ? I और वह रानी कदंबा ? राजा समझ गया कदंबा के षड़यंत्र को । राजा के हृदय में से कदंबा निकल गई ! लीलावती के लिए खोदे हुए खड्डे में कदंबा स्वयं गिरी। दूसरे के लिए जो खड्डा खोदते हैं, एक दिन वे स्वयं उस खड्डे में गिरते हैं। लीलावती को राजा के हृदय से और राज्य में से निकालने चली थी न? अल्प समय के लिए ठीक है, उसको सफलता मिली, परन्तु दीर्घकाल के लिए उसने अपना भविष्य अंधकारमय बना दिया । अपने सुख के लिए दूसरों को दुःखी करनेवाले कभी सुखी नहीं बन सकते । ध्यान रखना, सुख पाने के लिए यदि दूसरों को दुःखी करने चलोगे तो तुम स्वयं दुःख की गहरी खाई में गिर जाओगे। कदंबा का अब इस राजमहल में कोई स्थान नहीं रहा । सबकी नजरों में वह गिर गई। तिरस्कारपात्र बन गई । वह स्वयं भी समझ गई होगी कि 'अब मेरा इस महल में कोई स्थान नहीं रहा । ' राजा को लीलावती की चिंता : For Private And Personal Use Only दूसरे दिन जब पेथड़शाह राजसभा में पहुँचे, महाराजा राजसभा में नहीं आए थे। महामंत्री राजमहल में गए। महाराजा शयनकक्ष में थे। महामंत्री शयनकक्ष में पहुँचे। राजा अति उद्विग्न थे। महामंत्री ने विनय से पूछा : 'मेरे नाथ, आप इतने बेचैन क्यों हैं ? आज इतना दुःख किसलिए ?' राजा की आँखों में से आँसू टपकने लगे। महामंत्री ने अपने उत्तरीय वस्त्र से आँसू पोंछ दिए ।
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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