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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- १२ १६२ संशय होता है : 'शायद इस भोजन में जहर होगा तो ।' तो मनुष्य नहीं खाता है अथवा प्रयोगशाला में 'टेस्ट' करवाता है । समग्र जीवन-व्यवहार श्रद्धा और विश्वास से चलता है । वह श्रद्धा अंधी ही होती है। महामंत्री का भव्य व्यक्तित्व : लीलावती के हृदय में श्री नवकार मंत्र के प्रति श्रद्धा पैदा हो गई। क्योंकि पथमिणी के प्रति उसको विश्वास था। महामंत्री के प्रति पूर्ण श्रद्धा थी । महामंत्री के ब्रह्मचर्य-व्रत का अचिन्त्य प्रभाव उसने अनुभव किया था। लीलावती ने आराधना शुरू कर दी । एकाग्र मन से नवकार मंत्र का जाप और ध्यान करने लगी । दिन-प्रतिदिन उसका उल्लास बढ़ता जाता है । जाप करते करते उसकी आँखों में हर्ष के आँसू बहते हैं, हृदय अकथ्य आनन्द की अनुभूति करता है। पंच परमेष्ठि के प्रति भक्तिभाव उमड़ता है । पथमिणी प्रतिदिन उससे मिलती है। पूर्ण गंभीरता से समय व्यतीत होता है। महामंत्री पेथड़शाह भी पूर्ण स्वस्थता के साथ अपनी दैनिक धर्म-आराधना में लीन रहते हैं। राजा महामंत्री के साथ कोई व्यवहार नहीं करता है। महामंत्री भी अपने कर्तव्यों का समुचित पालन करते रहते हैं । प्रजा की संपूर्ण सहानुभूति महामंत्री के प्रति है । सब लोग प्रतीक्षा कर रहे हैं कि 'कब महामंत्री निष्कलंक घोषित हो ! कोई दिव्य घटना घटनी चाहिए।' महामंत्री का कितना उत्तम व्यक्तित्व होगा ! किसी को भी महामंत्री के चरित्र के प्रति कुशंका नहीं ! प्रजा का कैसा प्रेम संपादन किया होगा ! महामंत्री के मन पर कोई दबाव या तनाव नहीं था, बल्कि तनाव था प्रजा के मन पर । एक दिन तनाव का अन्त आ गया। राजा का पट्टहस्ति आलानस्तंभ तोड़कर, पागल होकर भगा। सारे नगर में तूफान मचाता हुआ नगर के बाहर निकल गया। हाथी को पकड़ने के लिए सैनिक भी नगर के बाहर पहुँचे । एक घटादार वृक्ष के नीचे हाथी पहुँचा और तुरंत ही बेहोश होकर जमीन पर गिर गया। सैनिकों ने देखा तो हाथी निश्चेष्ट हो गया था । राजा के हाथी को भूत लगा : राजा को जब समाचार मिला, तो दौड़ता हुआ राजा हाथी के पास आया । राजा को हाथी खूब प्यारा था। हाथी को बेहोश देखकर राजा उद्विग्न हो गया, रोने लगा। कैसा पशुप्रेम ! पशुप्रेम ने राजा को रुलाया ! मंत्रीमंडल ने नगर के मांत्रिकों को, तांत्रिकों को बुलाया। मांत्रिकों ने आकर अपने प्रयोग For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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