SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 164
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Jie प्रवचन-१२ १५६ परमात्मा का मंदिर आध्यात्मिक शक्ति जाग्रत करने की 'रिसर्च लेबोरेटरी' है-प्रयोगशाला है। • भयमुक्त होकर श्री नवकार मंत्र की आराधना हमें करनी है। द्वेषमुक्त बनकर नवकार का जाप करना है। 'बोर' हुए बिना र इस मंत्र को दिनरात रटना है! दुःखी आदमी को केवल थोथा उपदेश देकर हम धार्मिक नहीं बना सकते! पहले उसके साथ मैत्री का भाव विकसित करना होगा। फिर उसे भयमुक्त करें, निर्भय बनाएँ। उसे अद्वेषी बनाएँ एवं आराधना के लिए प्रोत्साहित करें। श्रद्धा और विश्वास से आदमी निर्भय बनता है। शंका और अविश्वास से आदमी डरपोक बनता है। भय की आशंका से । घिरा हुआ रहता है। • दुःख की वास्तविकता को पहचानने के लिए कर्मग्रन्थों का = अध्ययन आत्मसात् करना चाहिए। • प्रवचन : १२ परम करुणानिधि, महान श्रुतधर आचार्यश्री हरिभद्रसूरिजी 'धर्मबिन्दु' ग्रन्थ में धर्म का स्वरूप समझाते हुए फरमाते हैं : वचनाद् यदनुष्ठानमविरूद्धाद् यथोदितम । मैत्र्यादिभावसंयुक्तं तद्धर्म इति कीर्त्यते ।। प्रयोग कैसे करना चाहिए, यह सिद्धान्त समझाता है और सिद्धान्त की सत्यता प्रयोग से निश्चित होती है। प्रयोगसिद्ध सिद्धान्त सर्वमान्य बनता है। नास्तिक हो या आस्तिक हो, सबको मान्य हो जाता है। अनुष्ठान प्रयोग है, प्रयोग की प्रक्रिया बतानेवाले सिद्धान्त हैं। हमें जो अनुष्ठान करना है, उस अनुष्ठान करने की विधि हमें ज्ञात होनी चाहिए, अनुष्ठान की आदि से अन्त तक की प्रक्रिया बतानेवाले सिद्धान्त का हमें ज्ञान होना चाहिए। सिद्धान्त के अनुसार किया हुआ अनुष्ठान 'धर्म' बन जाता है। सिद्धान्त जाने बिना, मन घडंत ढंग से किया हुआ अनुष्ठान 'अधर्म' है। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy