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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ११ जन्म उत्सव : परमात्मा का जन्म होता है, देवलोक के ६४ इंद्र मिलकर भगवान को मेरूपर्वत पर ले जाते हैं और जन्म- महोत्सव मनाते हैं। भगवान महावीर को जब इंद्र मेरूपर्वत पर ले गये, छोटी-सी कायावाले भगवान पर बड़े-बड़े कलशों में से पानी का प्रवाह गिरने लगा, तब इंद्र के मन में सन्देह हुआ : ‘इतने छोटे-से भगवान पर इतना तेज पानी गिरता है, भगवान सहन कैसे कर सकेंगे? विचार कोई बुरा नहीं था, परन्तु अज्ञानमूलक था! परमात्मा की अनन्त शक्ति का विस्मरण था ! भगवान महावीर ने अवधिज्ञान से इंद्र के मन के विचार जान लिए! इंद्र की अज्ञानता दूर करने के लिए महावीर ने अपने पैर के अँगूठे को पर्वत से दबाया ! पर्वत नाचने लगा ! इंद्र घबरा उठा ! इंद्र ने अवधिज्ञान से देखना चाहा : 'किसने पर्वत को हिलाने की धृष्टता की है ? ' देखते ही इंद्र शरमा गया! 'ओह, यह तो मेरे परमात्मा ने, मुझे बोध देने के लिए अपनी शक्ति का परिचय दिया है।' इंद्र ने भगवान से क्षमा माँग ली। १५१ For Private And Personal Use Only अवस्थाचिन्तन में परमात्मा की बाल - अवस्था का ऐसा चिन्तन करना चाहिए कि जिससे परमात्मा की अलौकिकता का ज्ञान हो और अपनी पामरता का खयाल आ जाए। उनके जीवन में से कोई प्रेरणास्रोत मिले, उनके प्रति भक्ति का भाव बढ़े। मेरूपर्वत पर घटी हुई उस घटना को अपनी कल्पना में लाने से कितना आह्ह्ललाद होता है! दूसरी बात यह सोचो कि परमात्मा की सेवा में देवलोक के ६४ इंद्र और करोड़ों देव होने पर भी परमात्मा को कोई गर्व नहीं! कोई अभिमान नहीं ! 'मेरी सेवा में देव - देवेंद्र आते हैं। मेरे सामने इंद्र बैल बनकर नाचता है...!' ऐसा कोई स्व- उत्कर्ष नहीं ! 'धन्य है भगवंत आपकी निरभिमान दशा को!' अपना हृदय भी ऐसा बोल उठता है। ज्ञानी प्रदर्शन नहीं करते : इतने ज्ञानी, इतने शक्तिशाली होते हुए भी भगवान दूसरे समवयस्क मित्रों के साथ घुल-मिल जाते थे। मित्रों के साथ निर्दोष भाव से खेलते थे। भीतर से ज्ञानी और बाहर से अज्ञानी से भी लगते थे! भीतर से संपूर्ण विरक्त, बाहर से माता के प्रति प्रेम भी करते थे। सबके साथ हँसते थे, बोलते थे और खेलकूद करते थे। माता-पिता उनको पाठशाला ले गए तो वे चले गए पाठशाला! 'मैं सब कुछ जानता हूँ, मुझे क्यों पाठशाला ले जाते हो...' ऐसी कोई बात नहीं की। चले गए पाठशाला और बैठ गए दूसरे बच्चों के साथ!
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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