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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-११ १५० है। जबकि 'अवस्था चिन्तन' अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भावक्रिया है। जिस जिनेश्वर परमात्मा की विभिन्न उत्तम द्रव्यों से अंगपूजा और अग्रपूजा की, उस परमात्मा के सामने खड़े रहकर अथवा बैठकर, परमात्मा की अवस्थाओं का चिन्तन करने में कितना आनन्द आता है! तीन अवस्थाएँ इस प्रकार हैं : १. छद्मस्थ अवस्था २. कैवल्य अवस्था और ३. रूपातीत अवस्था। जन्म से लगाकर केवल ज्ञान होने तक छद्मस्थ अवस्था होती है। उस छद्मस्थ अवस्था में भी तीन अवस्थाएँ होती हैं : (१) बाल्यावस्था (२) राज्यावस्था (३) श्रमण अवस्था । परमात्मा की बाल्यावस्था का चिन्तन परमात्मा के सामने करना है। अपनी बाल्यावस्था और परमात्मा की बाल्यावस्था में बहुत अन्तर है। आप जानते हो क्या कि परमात्मा तीर्थंकरदेव माता के पेट में भी तीन ज्ञानवाले होते हैं? उनको मतिज्ञान, श्रुतज्ञान और अवधिज्ञान होता है। हाँ, माता के उदर में अवधिज्ञान होता है | अर्थात् उनका जन्म भी तीन ज्ञानसहित ही होता है। उनकी बाल्यावस्था ज्ञानपूर्ण होती है। बालक होते हुए भी वे अज्ञानी नहीं होते। उनका शरीर बालक का होता है, उनकी आत्मा तो 'अवधिज्ञानी होती है। अवधिज्ञान' किसको कहते हैं, यह तो जानते हो न? सभा में से : हम लोग तो कुछ भी नहीं जानते, धर्म की बातों में! महाराजश्री : इसलिए मैं कहता हूँ कि रात्रि के समय एक तत्त्वज्ञान वर्ग शुरू करें! ऐसी तत्त्वज्ञान की बातें उस समय बताई जाएँ तो जैन-परिभाषा का आप लोगों को अच्छा ज्ञान हो सकता है। इस समय प्रवचन में आनेवालों में से कुछ लोगों को तत्त्वज्ञान में रस नहीं होता है। जब तत्त्वज्ञान की बात आती है, उनको नीरस लगती है। बहुत गहराई में भले आप नहीं जाए, परन्तु कुछ ऊपर-ऊपर का तत्त्वज्ञान तो अवश्य पा लेना चाहिए। जैनधर्म की बातों को थोड़ा भी समझने के लिए तत्त्वज्ञान अनिवार्य रूप से चाहिए। बाल्यावस्था : परमात्मा की बाल्यावस्था का चिन्तन करोगे तो अवधिज्ञान का विचार करना आवश्यक बन जाएगा। 'अवधिज्ञान' क्या होता है, किस-किसको होता है, इत्यादि बातें समझ लेनी चाहिए। दूर-दूर रहे हुए जड़-रूपी चेतन पदार्थों को अवधिज्ञानी जान लेते हैं, देख लेते हैं। इन्द्रियों की सहायता लिए बिना जान लेते हैं। दूसरे के मन के विचारों को भी जान सकते हैं। देवों को तो अवधिज्ञान होता ही है, मनुष्यों को भी हो सकता है। For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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