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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १४३ प्रवचन-११ उस मंदिर आया करे और शंकर की पूजा करे तो तेरा काम हो जाएगा!' जटाशंकर को मित्र की बात पर विश्वास हो गया। पत्नी को भी बात बताई। पत्नी तो अत्यंत प्रसन्न हो गई और 'कल से प्रातःकाल आप उस मन्दिर में पूजन करने जाया करें। पूजन के लिए फल, मिठाई, पुष्प आदि बढ़िया सामग्री ले जाया करें...।' आज्ञा ही कर दी। क्या उसको परमात्मप्रेम था? नहीं, पुत्रप्रेम ने परमात्मा के पास जाने को बाध्य किया। वह परमात्मा से पुत्र लेने जाता है। लेने की, पुत्र पाने की प्रबल इच्छा से जाता है, नहीं कि प्रेम से। ___जटाशंकर प्रतिदिन जाता है। विधि अनुसार पूजन करता है, जाप करता है। उस मंदिर में प्रतिदिन एक भील-आदिवासी भी आता है, शंकर के दर्शन करने | उसका दर्शन-पूजन करने का ढंग ही निराला है। वह भील मुँह में पानी भर के लाता है। हाथ में जंगल के फूल लाता है। आकर वह तीर से शंकर की मूर्ति पर से फूल वगैरह उतार देता है, मुँह में से पानी की पिचकारी लगाता है मूर्ति पर और हाथ में से फूल फेंकता है। फिर शंकर के सामने देख कर पूछता है, 'कैसे हो मेरे शंकर? तेरी बड़ी दया है।' इतना बोलकर वह चला जाता है। जटाशंकर जाप करते-करते भील की पूजा देखता है और मन में गुस्सा करता है। भक्ति किसे कहते हैं? एक दिन तो जटाशंकर को शंकर पर ही गुस्सा आ गया। क्योंकि उस दिन शंकर ने उस भील के साथ बात की थी! मैं इतनी बढ़िया पूजा करता हूँ तो भी मेरे साथ इस शंकर को बात करने की नहीं सूझती और उस गँवार भील से बात करता है।' दूसरे दिन जब जटाशंकर मंदिर गया, मूर्ति को देखा, मूर्ति की एक आँख गायब थी! जटाशंकर बड़बड़ाया : ‘कैसे लोग हैं? भगवान की आँख भी चुरा ले जाते हैं। खैर, मैं कल बाजार से एक आँख ले आऊँगा और लगा दूंगा-मेरे खयाल से वह भील ही...।' जटाशंकर ने पूजा कर ली और जाप करने बैठ गया। इतने में वह भील आया। उसने रोजाना के ढंग से पूजा कर ली और शंकर की मूर्ति के सामने देखा। 'अरे, शंकर! तेरी एक आँख कहाँ गई? मेरी दो आँखें और तेरी एक! भला, ऐसा कैसे हो सकता है? तेरी दो आँखें चाहिए, ले मेरी एक आँख दे देता हूँ।' भील ने अपने नुकीले तीर से अपनी एक आँख For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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