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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन-११ ____१४२ समृद्ध लोगों को अपना गृहमन्दिर बनाना चाहिए और उस मन्दिर में दर्शनपूजन करना चाहिए। तो संघमन्दिर में भीड़ नहीं होगी। आप लोग यदि अपना-अपना गृहमन्दिर बना लो, तो मैं जिस प्रकार दर्शन करने की बात कह रहा हूँ, आप उस प्रकार दर्शन कर सकते हैं। परमात्मा के सामने 'त्राटक' भी कर सकते हैं। दर्शन की तड़पन के बाद यदि दर्शन होते हैं तो सहज ही 'त्राटक' हो जाता है। बीच में कोई विघ्न करनेवाले आयेंगे ही नहीं। मन्दिर में देने के लिए जाते हो या लेने के लिए? : आप लोगों को ऐसे मन्दिरों में दर्शन करने जाना ज्यादा पसन्द आता है कि जहाँ ज्यादा से ज्यादा लोग इकट्ठे हो जाते हों! आप वैसे तीर्थ को, मन्दिर को, मूर्ति को ज्यादा प्रभावशाली मानते हो! सही बात है न? आप लोगों को प्रभावशाली भगवान प्रिय है न? प्रभावों से आकर्षित होकर जानेवाले परमात्मा के प्रेमी लोग नहीं हैं, प्रभावों का आकर्षण लोभी लोगों को होता है। ऐसे लोग क्या मन्दिर में दर्शन करने जाते हैं? नहीं, वे लोग तो अपने दर्शन देने जाते हैं! 'भगवान मुझे देख लो मैं कितना दीन हूँ, दुःखी हूँ...प्रभु, मुझे देखो...!' दर्शन देने जाते हो न? भगवान आपको देख ले तो आपका काम हो जाय! आपको मतलब है आपके काम से! यदि भगवान उसमें माध्यम बन जाय तो अच्छा है। इसलिए जाते हो मन्दिर! ऐसे लोग परमात्मतत्त्व को पहचानते ही नहीं। ऐसे लोगों को परमात्मा से कोई लगाव नहीं होता है। वे लोग देने नहीं जाते, लेने जाते हैं मन्दिर में! आप मन्दिर में लेने जाते हो या देने? भील की निष्काम भक्ति : जटाशंकर को शादी किये दस-बारह साल बीत गये थे, परन्तु कोई संतान नहीं थी। जटाशंकर की पत्नी जटाशंकर से कहा करती थी कि 'आप कोई मंत्र, तंत्र, दोरा-धागा, ताबीज कुछ तो करो... जिससे अपनी कामना पूरी हो जाय... सन्तान की प्राप्ति हो जाय ।' एक दिन एक मित्र ने आकर जटाशंकर से कहा : 'दोस्त, तेरा काम हो जाएगा, यदि मेरी बात माने तो!' ___ जटाशंकर ने कहा : 'तू मेरा दोस्त है, तेरी बात क्यों नहीं मानूँगा भला? तू मेरे भले के लिए तो बात करने को आया होगा!' मित्र ने कहा : 'जटाशंकर, यहाँ से, अपने गाँव से पूर्व दिशा में एक मंदिर है महादेव का, बड़ी चमत्कारी है शिव की मूर्ति | जो कोई भाव से शंकर की भक्ति करता है, शंकर उसकी मनोकामनाएँ पूर्ण करता है। तू यदि प्रतिदिन For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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