SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 123
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ९ ११५ कृतज्ञता गुण है। उपकारी के प्रति सन्मान दृष्टि, पूज्य दृष्टि हुए बिना हम धार्मिक बन नहीं सकते। अरे, मानवता से भी गए ! निमित्त का उपकार मानना ही पड़ेगा। यदि निमित्त को उपकारी नहीं माना तो गुरु को भी उपकारी नहीं मान सकते। गुरु भी तो निमित्तमात्र हैं। प्रश्न : गुरु तो चेतन है न ? उत्तर : तो फिर जितने चेतन हों, सबको गुरु मान लो ! कुत्ता भी तो चेतन है... गुरु मान लो ! कुत्ते में और गधे में चैतन्य होते हुए भी उनको गुरु क्यों नहीं मानते? क्योंकि कुत्ता या गधा आपके मन में उच्च भाव पैदा नहीं करते, यानी उत्तम भावों की उत्पत्ति में निमित्त नहीं बनते । हाँ, किसी के आत्मविकास में किसी तरह कुत्ता भी निमित्त बन जाए तो कुत्ता भी गुरु बन जाए । निमित्त जड़ हो या चेतन महत्त्वपूर्ण बात नहीं है, हमारे मन में शुभ भाव कौन पैदा करता है, यह महत्त्वपूर्ण बात है। महामंत्री पेथड़शाह के हृदय में ब्रह्मचर्य व्रत के प्रति आदर था, इसलिए ब्रह्मचारी भीम श्रावक के प्रति आदर था और इसी कारण उस ब्रह्मचारी की भेंट के प्रति भी आदरभाव जागृत हुआ । यदि वास्तव में अपने गुण अनुरागी होंगे तो गुणवानों के प्रति अपने को आदरभाव होगा ही। यदि गुणवान पुरुषों के प्रति ईर्ष्या, तेजोद्वेष, तिरस्कार आदि कुत्सित भाव जागृत होते हैं तो समझना कि अपने गुणानुरागी नहीं हैं । ब्रह्मचर्य एक उत्तम गुण है, उस गुण के प्रति अपना अनुराग है, आदर है तो वह गुण जिस-जिस व्यक्ति में अपन देखें, उस व्यक्ति के प्रति आदरभाव पैदा होगा ही । जिस व्यक्ति के प्रति आदरभाव होगा, उस व्यक्ति की मामूली भेंट भी हम सहर्ष स्वीकार करेंगे। वीतराग में भी दोष देखने की दृष्टि : यदि आप लोग आत्मनिरीक्षण करेंगे तो समझ पाओगे कि आप में गुणानुराग है या नहीं। गुणवान पुरुषों के प्रति अद्वेष है या विद्वेष ? हाँ, आप यह समझ लेना कि इस संसार में कोई भी मनुष्य दोषरहित गुणवान नहीं मिलेगा । अपन कैसे हैं? दोषरहित गुणवान हैं? मैं तो ऐसा दोषरहित नहीं हूँ... आप लोग वैसे हो तो बता दो! मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। एक भी दोष न हो और मात्र गुण ही गुण हो ऐसा व्यक्ति तो वीतराग ही होता है। अरे, वीतराग भी यदि आ जाए तो आप लोग उनमें भी दोष देख लो ! ऐसी 'पावरफुल' दोषदृष्टि है न आपके पास? For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy