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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रवचन- ९ ११४ जगा। सभी ब्रह्मचारियों को वस्त्र भेजे वैसे महामंत्री पेथड़शाह को भी वस्त्र भेजे। हालाँकि पेथड़शाह ब्रह्मचारी नहीं थे, परन्तु तत्कालीन जैन संघ के वे सर्वमान्य श्रेष्ठ श्रावक थे । इसलिए भीम ने उनको भी अपनी भेंट भेजी थी। भीम ने अपने दो मित्रों को वस्त्र लेकर मांडवगढ़ भेजा था। वे दोनों मांडवगढ़ पहुँचे। पेथड़शाह की हवेली पर जब वे पहुँचे और भीम का संदेश सुनाया, तब पेथड़शाह का हृदय गद्गद् हो गया। अपने मन में भीम के प्रति अनहद अनुराग उत्पन्न हुआ। परन्तु महामंत्री ने भीम की भेंट को स्वीकार नहीं किया । उन्होंने उन दो आगन्तुकों से कहा : ‘मैं आपका स्वागत करता हूँ, आप महानुभाव भीम की ओर से उत्तम भेंट लेकर आए हो, मैं उसका स्वीकार अभी यहाँ नहीं करूँगा, आप नगर के बाहर जो धर्मशाला है वहाँ पधारें, मैं इस भेंट का वहाँ उचित स्वागत करूँगा, बाद में स्वीकार करूँगा । उन दो आगन्तुको को बड़ा आश्चर्य हुआ । 'महामंत्री इन वस्त्रों का स्वागत करेंगे?' बेचारे वे लोग महामंत्री का भव्य आदर्श कैसे समझ पाते ? महापुरुषों के संकेत हर कोई मनुष्य नहीं समझ पाता । आप लोग समझ गए महामंत्री के संकेत को ? क्यों उन्होंने वहाँ हवेली में ही भेंट का स्वीकार नहीं किया? उन दो आगन्तुक पुरुषों के मुँह से महामंत्री ने महानुभाव भीम के जीवन के बारे में बहुत-र - सी बातें सुनीं थी । सुनते-सुनते महामंत्री के हृदय में वैषयिक सुखों के प्रति वैराग्य पैदा हो गया था। उत्तम भाव पैदा हो गए थे । उन उत्तम भावों की जागृति में निमित्त बनी थी वह भेंट | ऐसे निमित्त का सत्कार करना ही चाहिए न? जो भी जड़ या चेतन, मनुष्य के शुभ या शुद्ध भावों की जाग्रति में निमित्त बनता है;। वह निमित्त मनुष्य के लिए दर्शनीय, पूजनीय और अभिनन्दनीय बनता है। वहाँ जड़-चेतन का भेद नहीं किया जाता । अच्छे निमित्त भी उपकारक होते हैं : कुछ लोग ऐसा तर्क करते हैं कि 'परमात्मा की मूर्ति तो जड़ होती है, पाषाण की या धातु की होती है, उससे क्या मिलने का ? पत्थर की गाय दूध नहीं देती...' कितना मूर्खतापूर्ण तर्क है यह!! शिल्पी पत्थर की गाय बनाकर बाजार में बेचता है तो दूध क्या, हजारों रूपयें प्राप्त करता है । परमात्मा की मूर्ति भले जड़ है, परन्तु हमारे राग-द्वेष के दुर्भावों को मिटाती है और वैराग्य या भक्ति के भाव जागृत करती है, यानी शुभ भावों की जागृति में निमित्त बनती है, इसलिए वह मूर्ति दर्शनीय और पूजनीय बनती है । जिससे हमें शुभ या शुद्ध भावों की प्राप्ति हो, हमारे लिए वह वंदनीय और पूजनीय ! यह For Private And Personal Use Only
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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