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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- ९ धर्ममय जीवन ही शांतिपूर्ण बनेगा : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ मात्र धार्मिक क्रियाओं की बात नहीं है, जीवन की प्रत्येक क्रिया को धर्म की यह परिभाषा स्पर्श करती है। इसी ग्रंथ में उन क्रियाओं को ग्रंथकार महात्मा ने बताया है और मार्गदर्शन दिया है! मकान कहाँ और कैसा बनाना, शादी किस से और कब करनी, धनप्राप्ति कैसे करनी... इत्यादि बातों को लेकर ग्रंथकार ने यथोचित पथ-प्रदर्शन किया है। यदि आप लोग यह मार्गदर्शन ग्रहण करके जीवन जियो तो आपका समग्र जीवन धर्ममय बन सकता है । चाहते हो न जीवन को धर्ममय बनाना? इस प्रकार का धर्ममय जीवन ही शान्तिपूर्ण हो सकता है । आप भयमुक्त बनेंगे, द्वेषरहित बनेंगे और अखिन्न बने रहेंगें। धर्ममय जीवन के ये प्रत्यक्ष लाभ हैं। दो-चार धर्मक्रियाएँ कर लेने मात्र से जीवन धर्ममय नहीं बन जाता । सभा में से : हम लोग तो ऐसा ही मान रहे हैं कि दो चार धर्मक्रिया कर लेने से धार्मिक बना जा सकता है ! For Private And Personal Use Only महाराजश्री : मान्यता बदलनी पड़ेगी। यह मान्यता भ्रान्तिपूर्ण है, मिथ्या है। अरे, वे दो-चार धर्मक्रियाएँ भी किस प्रकार करते हो? विधिपूर्वक करते हो? भावपूर्ण हृदय से करते हो? औचित्य के साथ करते हो? कैसे मान लिया आपने अपने आपको धार्मिक ? दुःखों का भय सताता है न? गुणवान पुरुषों के प्रति द्वेष हो जाता है न ? खेद, ग्लानि, थकान महसूस करते हो न ? फिर कहाँ के धार्मिक ? धार्मिक मनुष्य में ये बातें नहीं होतीं । धार्मिक मनुष्य का जीवन औचित्यपूर्ण होता है। सर्वत्र औचित्य का पालन वह करता है । अनुचित प्रवृत्ति उसके जीवन में नहीं होती है। ठीक है न? है न ऐसा जीवन ? गुणानुरागी बनना कठिन है : मांडवगढ़ के महामंत्री पेथड़शाह के जीवन की एक और रोचक एवं बोधक घटना है। मालवा में उस समय ताम्रावती नगरी में भीम नाम का एक सोने का व्यापारी रहता था। धनवान तो वह था ही, परन्तु वह गुरुभक्त भी वैसा ही था । अपने गुरुदेव का स्वर्गगमन होने से उसको इतना दुःख हुआ कि उसने अन्न का त्याग कर दिया और संपूर्ण ब्रह्मचर्य व्रत का पालन करने लगा । एक दिन उसके मन में विचार आया कि अपने देश के सभी ब्रह्मचारी स्त्री-पुरुषों का सन्मान-सत्कार करूँ ।' उसने प्रत्येक ब्रह्मचारी को पाँच-पाँच वस्त्र और परमात्मपूजन के लिए रेशमी वस्त्र भेजे । ब्रह्मचारी को दूसरे ब्रह्मचारी के प्रति
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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