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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रवचन- ७ रागी-द्वेषी का तर्क भी कुतर्क : Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ९५ आजकल रागी-द्वेषी मनुष्यों की बातों पर आप लोग ज्यादा विश्वास कर रहे हैं। भले आपके सांसारिक क्षेत्र में आपको विश्वास करना हो, आप जानो, पर आत्म-कल्याण के क्षेत्र में, पारलौकिक और परोक्ष तत्त्वों के विषय में रागी और द्वेषी मनुष्यों की तर्कयुक्त बातें भी मानी नहीं जा सकती। क्योंकि वे तर्क भी कुतर्क होते हैं। कुतर्क के जाल भी ऐसे गूँथे जाते हैं कि थोड़े समय के लिए सत्य भी हार जाय ! मेरे खयाल से तो आप लोगों को इस प्रपंच में फँसना ही नहीं चाहिए। वाद और प्रतिवाद से पारलौकिक और पारमार्थिक तत्त्वों का निर्णय नहीं किया जा सकता । यदि ऐसे तर्क-प्रति तर्क से तत्त्वनिर्णय होता तो कभी का सर्वसम्मत तत्त्वनिर्णय हो जाता। परन्तु नहीं हुआ । तत्त्वज्ञान के लिए इधर-उधर मत भटको : आप लोगों को यदि धर्म की आराधना करनी है, आराधना करने के लिए धर्म का स्वरूप जानना है, तो इधर-उधर भटकने की आवश्यकता ही नहीं है। आपको परमात्मा जिनेश्वरदेव का धर्मशासन मिला है। सर्वज्ञ वीतराग परमात्मा का धर्मशासन मिला है। आप इस धर्मशासन के तत्त्वों को समझने का प्रयत्न करें। For Private And Personal Use Only घोर अज्ञान के घनघोर अंधकार को मिटानेवाला कितना अपूर्व तत्त्वज्ञान देता है जैनशासन! अन्तरात्मा के क्लेश, संताप और विषाद सब मिट जाते हैं इस तत्त्वज्ञान से। परस्पर विरोधी विचारों में भी सामंजस्य स्थापित करनेवाला ‘अनेकान्तवाद' पढ़ो! अपने - अपने मन्तव्यों को दृढ़ता से प्रदर्शित करनेवाले नयवाद का अध्ययन करो। समग्र जीवसृष्टि का परिचय करानेवाला जीवविज्ञान पढ़ो। नौ तत्त्वों की सर्वांगसम्पूर्ण व्यवस्था समझो। जो तत्त्वज्ञान आपको सरलता से मिल सकता है, उसके प्रति आप ध्यान देते नहीं और इधर-उधर का तत्त्वज्ञान पाने दौड़ते हो, ध्यान रखना, गुमराह हो जाओगे । प्रश्न : जहाँ अच्छा सुनने को मिले वहाँ तो जा सकते हैं न? उत्तर : अच्छा किसको कहते हो ? सुनने में मज़ा आ जाय, वह अच्छा? सुनने में आनन्द आ जाय, वह अच्छा ? अच्छा क्या और बुरा क्या, इसका भेद करना आता है? ऊपर से अच्छा लगनेवाला कभी भीतर से बुरा होता है, यह जानते हो? जहरमिश्रित लड्डू छोटे बच्चे को अच्छा लगता है, क्योंकि वह लड्डू देखता है, उसको जहर नहीं दिखता है। धर्म की बातों में भी ऐसा होता है । ऊपर से तो लगे धर्म की बात, भीतर में हो अधर्म की बात ! हाँ, आप समझदार
SR No.009629
Book TitleDhammam Sarnam Pavajjami Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhadraguptasuri
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2010
Total Pages339
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Religion
File Size2 MB
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