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________________ अक्षत-पूजा करने की विधि उत्तम प्रकार के स्वच्छ-शुद्ध तथा दोनों ओर धारवाले अखंड चावल का अक्षत के रूप में उपयोग करना चाहिए। यदि सम्भव हो तो सोने अथवा चांदी के चावल बनाकर लाना चाहिए। तेल-रंग-केशर आदि से मिश्रित चावल का उपयोग नहीं करना चाहिए । पूजन आदि में भी वर्ण के अनुसार धान्य का उपयोग करना चाहिए। अक्षत पूजा करने के लिए उपयोगी अखंड चावल को स्वच्छ थाल में रखकर दोनों हाथों में थाल को धारण कर, दोनों घुटने जमीन पर रखकर, प्रभुजी के समक्ष दृष्टि रखकर मधुर स्वरमें ये दोहे बोलने चाहिए : (पुरुष पहले नमोऽर्हत्...बोले) शुद्ध अखंड अक्षत ग्रही, नंदावर्त विशाल। पुरी प्रभु सन्मुख रहो, टाली सकल जंजाल...॥१॥ 'ॐ ह्रीँ श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय अक्षतान्यजामहेस्वाहा...'(२७ डंका बजाएँ) अर्थ : शुद्ध तथा अखंड अक्षत लेकर प्रभुजी के पास विशाल नंदावर्त बनाना चाहिए तथा सब प्रकार के जंजाल का त्याग कर प्रभुजी के समक्ष शुभ भाव रखना चाहिए। दोहे-मन्त्र बोलने के बाद अक्षत को दाहिनी हथेली में रखकर हथेली के नीचे के भाग से क्रमशः मध्य में सम्यग् दर्शन-ज्ञान (75)
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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