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________________ प्रक्षाल की विधि अष्टपड मुखकोश बाँधकर दोनों हाथों में कलश पकड़कर प्रभुजी के मस्तक से पंचामृत- दूध आदि का प्रक्षाल करना चाहिए । प्रक्षाल करते समय सम्पूर्ण मौन धारण करना चाहिए । तथा अपना शरीर निर्मल हो रहा है, ऐसी भावना भानी चाहिए । प्रक्षाल करते समय यदि सम्भव हो तो अन्य भाविक घंटनाद-शंखनाद-नगारा आदि वाद्य लय में बजाए । • पंचामृत अथवा दूध का अभिषेक यदि चल रहा हो तो उस समय पानी का अभिषेक नहीं करना चाहिए। • अभिषेक करते समय अपने वस्त्र, कोई भी अंग, नाखून आदि कर्कश वस्तु प्रभुजी को स्पर्श नहीं करना चाहिए। ● • प्रक्षाल करने के लिए अन्य भाविकों को जोर-जोर से आवाज देकर बुलाने से प्रभुजी की आशातना लगती है । • प्रभुजी की सुन्दर आंगी की गई हो तथा उससे भी विशिष्ट आंगी करने की क्षमता यदि हो तो ही सुबह प्रक्षाल किए गए प्रभुजी को सम्मान पूर्वक बिराजमान कर पुन: दूसरी बार प्रक्षाल की जा सकती है, अन्यथा नहीं । यदि प्रक्षाल हो गये हो अथवा अंगपौंछना चल रहे हो या 41
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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