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________________ (३) पंचांग-प्रणिपात प्रणाम : खमासमण देते समय पांचों अंगों को विधिवत् झुकाना चाहिए। ४. पूजा त्रिक (१)अंग पूजा : प्रभुजी के स्पर्श करके होनेवाली पक्षाल, चंदन, केसर तथा पूष्प पूजा। (२) अग्र पूजा : प्रभुजी के आगे खड़े होकरकी जानेवाली धूप, दीप,चामर, दर्पण,अक्षत, नैवेद्य,फल तथा घंटपूजा। (३) भाव पूजा : प्रभुजी की स्तवना स्वरूप चैत्यवन्दन आदि करना। (नोट : अन्य प्रकार से भी पूजा त्रिक होती है। पाँच प्रकारी पूजा : चंदन, पुष्प,धूप, दीप तथा अक्षत पूजा। अष्ट प्रकारी पूजा : न्हवण, चंदन, पुष्प, धूप, दीप, अक्षत, नैवेद्य तथा फल पूजा। सर्वप्रकारी पूजा : उत्तम वस्तुओं के द्वारा प्रभुजी की विशिष्ट भक्ति करना। ५.अवस्था त्रिक (१) पिंडस्थ अवस्था : प्रभुजी की समकित प्राप्ति से अन्तिम भव युवराज पद तक की अवस्था का चिंतन करना। (२)पदस्थ अवस्था : प्रभुजी के अन्तिम भव में (18)
SR No.009609
Book TitleSachitra Jina Pooja Vidhi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year
Total Pages123
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual_text, Ritual, & Vidhi
File Size2 MB
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