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________________ वाणी, व्यवहार में... हूँ। बाक़ी सूक्ष्म कला है यह। यह कठोर शब्द कहा, तो उसका फल कितने समय तक आपको उसके स्पंदन लगते रहेंगे। एक भी अपशब्द अपने मुँह से नहीं निकलना चाहिए। सुशब्द होना चाहिए। पर अपशब्द नहीं होना चाहिए। और उल्टा शब्द निकला मतलब खुद के भीतर भावहिंसा हो गई, वह आत्महिंसा मानी जाती है। अब यह सारा लोक चूक जाते हैं और पूरे दिन क्लेश ही करते वाणी, व्यवहार में... अपने लोग लकड़ियाँ मारते हैं घर में? लकड़ियाँ या धौल नहीं मारते? नीची जाति में हाथ से या लकड़ी से मारामारी करते हैं। ऊँची जाति में लकड़ी से नहीं मारते, पर वचनबाण ही मारते रहते हैं। शब्द किसीसे बोलें और उसे खराब लगे तो वह शब्द अपशब्द कहलाता है। वह अकारण ही अपशब्द बोलता हो न, तो भी जोखिम है। और अच्छे शब्द अकारण बोलता हो तो भी हितकारी है। पर गलत शब्द. अपशब्द अकारण ही बोलते हों, वह अहितकारी है। क्योंकि अपशब्द किसे कहा जाता है? दूसरों को कहें, और उसे दुःख हो वे सारे ही अपशब्द कहलाते हैं। बाहर तो पुलिसवाले को तो कुछ कहते नहीं, घर में ही कहते हैं न! पुलिसवाले को अपशब्द कहनेवाला ऐसा कोई बहादुर मैंने देखा नहीं है (!) पुलिसवाला तो हमें पाठ पढ़ाता है। घर में पाठ कौन पढ़ाएगा? हमें नया पाठ तो सीखना चाहिए न?! प्रश्नकर्ता : व्यापार में सामनेवाला व्यापारी जो होता है, वह नहीं समझे और अपने से क्रोधावेश हो जाए, तो क्या करना चाहिए? दादाश्री : व्यापारी के साथ तो मानो कि व्यापार के लिए है, वहाँ तो बोलना पड़ता है। वहाँ भी 'नहीं बोलने' की कला है। वहाँ नहीं बोलें तो सारा काम हो जाए वैसा है। पर वह कला जल्दी आ जाए वैसी नहीं है, वह कला बहुत ऊँची है। इसलिए वहाँ पर लड़ना न, अब वहाँ जो फायदा (!) हो वह देख लेना, उसे फिर जमा कर लेना। लड़ने के बाद जो फायदा (!) होता है न, वह हिसाब में जमा कर लेना चाहिए। बाक़ी घर में बिलकुल झगड़ना नहीं। घरवाले तो अपने लोग कहलाते हैं। 'नहीं बोलने' की कला, वह तो दूसरों को आए ऐसी नहीं है। बहुत कठिन है वह कला। उस कला में तो क्या करना पड़ता है? 'वह तो सामनेवाला आए न, उससे पहले उसके शुद्धात्मा के साथ बातचीत कर लेनी चाहिए और उसे शांत कर देना चाहिए, और उसके बाद हमें बोले बिना रहना चाहिए। इससे अपना सारा काम पूरा हो जाएगा।' मैं आपको संक्षेप में कह देता ये शब्द जो निकलते हैं न, वे शब्द दो प्रकार के हैं, इस दुनिया में शब्द जो हैं उनकी दो क्वॉलिटी हैं। अच्छे शब्द शरीर को निरोगी बनाते हैं और खराब शब्द शरीर को रोगी बनाते हैं। इसलिए शब्द भी उल्टा नहीं निकलना चाहिए। 'एय... नालायक।' अब 'एय...' शब्द हानिकारक नहीं है। पर 'नालायक' शब्द बहुत हानिकारक है। _ 'तुझमें अक्कल नहीं है' ऐसा कहा वाइफ को, वह शब्द सामनेवाले को दुःखदायी है और खुद को रोग खड़ा करनेवाला है। तब वह कहेगी, 'आपमें कहाँ बरकत है!' तो दोनों को रोग उत्पन्न होते हैं। यह तो पत्नी बरकत ढूंढती है और पति उसकी अक्कल ढूंढता है। यही की यही दशा है सारी! इसलिए अपना स्त्रियों के साथ कुछ झगड़ा नहीं होना चाहिए और स्त्रियों को पुरुषों के साथ झगड़ा नहीं करना चाहिए। क्योंकि बंधनवाले हैं। इसलिए निबेड़ा ले आना चाहिए। एक बहन को तो मैंने पूछा, 'पति के साथ सिरफोड़ी-झगड़ा होता है क्या? क्लेश होता है क्या?' तब वह कहती है, 'नहीं, कभी भी नहीं।' मैंने कहा, 'वर्ष में एकाध बार क्लेश ही नहीं?' तब वह कहती है, 'नहीं।' मैं तो यह सुनकर आश्चर्यचकित हो गया कि हिन्दुस्तान में ऐसे घर हैं ! पर वे बहन वैसी थीं। इसलिए फिर मैंने आगे पछा कि, 'कुछ तो होता होगा। पति है इसलिए कुछ हुए बिना रहता नहीं।' तब वह कहती है, 'नहीं, किसी दिन ताना मारते हैं।' गधे को डंडा जमाना और स्त्री को ताना मारना। स्त्री
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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