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________________ वाणी, व्यवहार में... जाएंगे, तब जगत् बंद हो जाएगा। सारी लड़ाईयाँ शब्द से ही हुई हैं इस दुनिया में, जो भी हुई हैं वे! शब्द मीठे चाहिए और शब्द मीठे नहीं हों तो बोलना नहीं। अरे, झगड़ा किया हो अपने साथ, उनके साथ भी हम मीठा बोलें न, तो दूसरे दिन एक हो जाएँ वापिस। वाणी, व्यवहार में... १. दुःखदायी वाणी के स्वरूप प्रश्नकर्ता : यह जीभ ऐसी है कि घड़ी में ऐसा बोल लेती है, घड़ी में वैसा बोल लेती है। दादाश्री : ऐसा है न, इस जीभ में ऐसा दोष नहीं है। यह जीभ तो अंदर वे बत्तीस दाँत हैं न, उनके साथ रहती है, रात-दिन काम करती है। पर लड़ती नहीं है, झगड़ती नहीं है। इसलिए जीभ तो बहुत अच्छी है, पर हमलोग टेढ़े हैं। आप ओर्गेनाइजर टेढ़े हैं। भूल अपनी है। इसलिए जीभ तो बहुत अच्छी है, इन बत्तीस दाँतों के बीच में रहती है तो कभी भी वह कुचल जाती है? वह कटती है कब? कि अपना चित्त खाते समय दूसरी जगह पर गया हो तब ज़रा कट जाती है। और हम यदि टेढे हों, तो ही चित्त दुसरे में जाता है। नहीं तो चित्त दसरे में नहीं जाता, और जीभ तो बहुत अच्छा काम करती है। ओर्गेनाइजर ने ऐसे टेढ़ा देखा कि जीभ दाँत के बीच में आकर कुचल जाती है। प्रश्नकर्ता : मेरा जीभ पर काबू हो वैसा कीजिए न! क्योंकि मैं अधिक बोलता हूँ। दादाश्री : वह तो मैं भी बोलता ही रहता हूँ पूरे दिन । आपके बोलने में कोई ऐसा वाक्य नहीं है न, कि किसीको दु:खदायी हो जाए वैसा? तब तक बोलना खराब नहीं कहलाता। प्रश्नकर्ता : पर इन शब्दों पर से बहुत झगड़े होते हैं। दादाश्री : शब्दों से तो जगत् खड़ा हो गया है। जब शब्द बंद हो सामने बड़ी उम्रवाला हो न, तो भी उसे कहेंगे, 'आपमें अक्कल नहीं है।' इनकी अक्कल नापने निकले! ऐसा बोला जाता होगा? फिर झगड़े ही होंगे न! पर ऐसा नहीं बोलना चाहिए, सामनेवाले को दु:ख हो वैसा कि 'आपमें अक्कल नहीं है।' सामान्य मनुष्य तो नासमझी के मारे ऐसा बोलकर जिम्मेदारी स्वीकारता है। पर समझदार हों, वे तो खद ऐसी जिम्मेदारी लेते ही नहीं न! नासमझीवाला उल्टा बोले पर खुद को सीधा बोलना चाहिए। सामनेवाला तो नासमझी से चाहे जो पूछे, पर खुद को उल्टा नहीं बोलना चाहिए। जिम्मेदार है खुद। सामनेवाले को 'आप नहीं समझोगे' ऐसा कहना, वह बहुत बड़ा ज्ञानावरण कर्म है। आप नहीं समझोगे वैसा नहीं कह सकते। पर 'आपको समझाऊँगा' ऐसा कहना चाहिए। आप नहीं समझोगे' कहें तो, सामनेवाले के कलेजे पर घाव लगता है। हम सुख में बैठे हों और थोड़ा कोई आकर कहे, 'आपमें अक्कल नहीं है।' इतना बोले कि हो गया, खतम! अब उसने कोई पत्थर मारा है? शब्द का ही असर है जगत् में। छाती पर घाव लगे, वह सौ-सौ जन्मों तक नहीं जाता। छाती पर घाव लगा है, ऐसा बोले हो', कहेंगे। असर ही है यह ! जगत् शब्द के असर से ही खड़ा हुआ है। कितनी ही बहनें मुझे कहती हैं, 'मेरे पति ने मुझे कहा था, उससे मेरी छाती पर घाव लगा है। वह मुझे पच्चीस वर्षों बाद भी भला नहीं जाता।' तब वाणी से कैसा पत्थर मारा होगा?! जो घाव फिर भरते नहीं हैं। वैसे घाव नहीं लगाने चाहिए।
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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