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________________ वाणी, व्यवहार में... हम क्या कहना चाहते हैं? कि जो कुछ आता है वह आपका हिसाब है। उसे चुक जाने दो और फिर नए सिरे से रकम उधार मत देना। प्रश्नकर्ता : नई रकम उधार देना किसे कहते हैं आप? दादाश्री : कोई आपको उल्टा कहे तो आपको मन में ऐसा होता है कि 'यह मुझे क्यों उल्टा सुना रहा है?' इसलिए आप उसे नई रकम उधार देते हो। जो आपका हिसाब था, वह चुकाते समय आपने फिर से नये हिसाब का खाता शुरू किया। इसलिए एक गाली जो उधार दी थी, वह वापिस देने आया, तब वह हमें जमा कर लेनी थी, उसके बदले में आपने पाँच नई उधार दे दीं वापिस। यह एक तो सहन होती नहीं, वहाँ दुसरी पाँच उधार दी, वहाँ पर नई जमा-उधार करता है न, और फिर उलझता रहता है। इस तरह सारी उलझनें खड़ी करता है। अब इसमें मनुष्य की बुद्धि किस तरह पहुँचे? यदि तुझे यह व्यापार नहीं पुसाए तो फिर से देना मत, नया उधार मत देना, और यह पुसाता हो तो फिर से पाँच दे। प्रश्नकर्ता : एक बार जमा करें, दो बार जमा करें, सौ बार जमा करें, ऐसा हर बार जमा ही करते रहें? दादाश्री : हाँ, फिर उधार दोगे तो फिर से वह बहीखाता चलता रहेगा। इसके बदले तू लाख बार जमा करवा न, हमें जमा करने हैं। और उसका अंत आएगा। देखना न, मेरे कहे अनुसार चलो न! प्रश्नकर्ता : इतने वर्ष बीत गए, फिर भी अभी तक अंत नहीं आया। दादाश्री : दूसरा विचार करने के बदले मेरे कहे अनुसार करना न, अंत आ जाएगा। और मैंने जमा किए हैं, ऐसे बहुत सारे। हम अट्ठाईस वर्षों से नया उधार ही नहीं देते। इसलिए बहीखाते सारे कितने चोखे हो गए हैं! अपने पड़ोसी से कहें कि, 'आप सुबह पहले मुझे पाँच गालियाँ देना।' तब वह क्या कहेगा कि, 'मैं कोई फालतू हूँ?' यानी हिसाब नहीं २२ वाणी, व्यवहार में... है, वह कोई गालियाँ देगा ही नहीं न! और हिसाब है, वह कोई छोड़नेवाला नहीं है। अब अपना इतना पुरुषार्थ शेष रहा कि, 'हँसते मुख से जहर पीओ।' किसी दिन बेटे के साथ कोई मतभेद हो गया, बेटा विरोध करे तो फिर जो 'प्याला' दे जाए, वह पीना तो पड़ेगा न ! रो-रोकर भी पीना तो पड़ेगा ही न? वह 'प्याला' थोड़े ही कोई उसके सिर पर मार सकते हैं? पीना तो पड़ेगा ही न? प्रश्नकर्ता : हाँ, पीना पड़ेगा। दादाश्री : जगत् रो-रोकर पीता है। हमें हँसकर पीना है! बस, इतना ही कहा है। सामनेवाला क्या बोला, कठोर बोला, उसके हम ज्ञाता-दृष्टा। हम क्या बोले, उसके भी हम ज्ञाता-दृष्टा। किसी व्यक्ति ने गाली सुनाई, तो वह क्या है? उसने आपके साथ व्यवहार पूरा किया। सामनेवाला जो कुछ भी करता है, जय-जय करता हो, तो वह, अथवा गालियाँ देता हो, तो वह भी सारा आपका ही. आपके साथ का व्यवहार ओपन करता है। वहाँ पर व्यवहार को व्यवहार से छेदना। और व्यवहार एक्सेप्ट (स्वीकार) करना। वहाँ तू बीच में न्याय मत डालना। न्याय डालेगा तो उलझ जाएगा। प्रश्नकर्ता : और यदि हमने गाली कभी दी ही नहीं हों तो? दादाश्री : यदि गालियाँ नहीं दी हों तो सामने गालियाँ नहीं मिलेंगी। पर यह तो अगला-पिछला हिसाब है, इसलिए दिए बगैर रहेगा ही नहीं। बहीखाते में जमा हो तो ही आता है। किसी भी प्रकार का असर हुआ, वह बिना हिसाब के नहीं होता। असर, वह बीज का फल है। इफेक्ट (असर) का हिसाब, वह व्यवहार। व्यवहार किसे कहा जाता है? नौ हो उसे नौ से भाग करना। यदि नौ को बारह से भाग देंगे तो व्यवहार कैसे चलेगा?
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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