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________________ वाणी, व्यवहार में.... १९ दादाश्री : कुछ भी स्पंदन नहीं करना चाहिए। सब देखते ही रहना चाहिए। पर वैसा होता नहीं है न! यह भी मशीन है और फिर पराधीन है। इसलिए हम दूसरा रास्ता बताते हैं कि टेप हो जाए कि तुरन्त मिटा दो तो चलेगा। यह प्रतिक्रमण, वह मिटाने का साधन है। इससे एकाध भव में परिवर्तन होकर सारा बोलना बंद हो जाएगा। यह 'सच्चिदानंद' शब्द बोलने से बहुत इफेक्ट होता है। बिना समझे बोलें तो भी इफेक्ट होता है। समझकर बोले तब तो बहुत लाभ होता है। ये शब्द बोलने से स्पंदन होते हैं और भीतर मंथन होता है। सब सायन्टिफिक है। प्रश्नकर्ता: 'काम नहीं करना है, ऐसा बोले, तो उसमें क्या हो जाता है? दादाश्री : फिर आलस आ जाता है। अपने आप ही आलस आता है और 'करना है' कहे तो आलस सारा जाने कहाँ चला जाता है। मैं 'ज्ञान' होने से पहले की बात बताता हूँ। मैं पच्चीस वर्ष का था, तब मेरी तबियत नरम हो और कोई पूछता कि, 'कैसी है आपकी तबियत?' मैं कहता कि, 'बहुत अच्छी है।' और दूसरे किसीकी तबियत अच्छी हो और हम पूछें कि, 'कैसी है आपकी तबियत ?' तब वह कहता है, 'ठीक है।' अरे भाई, 'ठीक है' कहता है, इसलिए आगे नहीं बढ़ेगा। इसलिए फिर मैंने 'ठीक' शब्द उड़ा दिया। यह शब्द नुकसान करता है। आत्मा 'ठीक' हो जाता है फिर 'बहुत अच्छा' कहें, उस घड़ी आत्मा 'अच्छा' हो जाता है। बाक़ी लोग समझते हैं कि दादा चैन से कमरे में जाकर सो जाते हैं। उस बात में माल नहीं है। पद्मासन लगाकर एक घंटे तक और इस सतहत्तर वर्ष की उम्र में पद्मासन लगाकर बैठना। पैर भी मुड़ जाते हैं और उससे आँखों की शक्ति, आँखों का प्रकाश, वह सब आज भी कायम है। क्योंकि प्रकृति की मैंने कभी भी निंदा नहीं की है। उसकी बुराई २० वाणी, व्यवहार में.... कभी भी नहीं की है। अपमान कभी किया नहीं। लोग बुराई करके अपमान करते हैं। प्रकृति जीवंत है, उसका अपमान करोगे तो उस पर असर होगा। ४. दुःखदायी वाणी के समय, समाधान ! प्रश्नकर्ता : कोई कुछ बोल जाए, उसमें हम समाधान किस तरह करें? समभाव किस तरह रखें? T दादाश्री : अपना ज्ञान क्या कहता है? कोई आपका कुछ कर सके ऐसा है ही नहीं वर्ल्ड में कोई जन्मा ही नहीं कि जो आपमें कुछ दखल कर सकता हो । किसीमें कोई दखल कर सके वैसा है ही नहीं। तो यह दख़ल क्यों आती है ? आपमें जो दखलअंदाजी करता है वह आपके लिए निमित्त है। पर उसमें मूल हिसाब आपका ही है। कोई उल्टा करे या सीधा करे, पर उसमें हिसाब आपका ही है और वह निमित्त बन जाता है। वह हिसाब पूरा हुआ कि फिर कोई दखल नहीं करेगा। इसलिए निमित्त के साथ झगड़ा करना बेकार है। निमित्त को काटने दौड़ने पर फिर वापिस गुनाह खड़ा होगा। इसलिए इसमें करने के लिए कुछ रहता नहीं है। यह विज्ञान है, वह सब समझ लेने की ज़रूरत है। प्रश्नकर्ता: कोई हमें कुछ कह जाए, वह भी नैमितिक ही है न? अपना दोष नहीं हो, फिर भी बोले तो? दादाश्री : इस जगत् में आपका दोष नहीं हो तो किसी व्यक्ति को ऐसा बोलने का अधिकार नहीं है। इसलिए ये बोलते हैं तो आपकी भूल है, उसका बदला देते हैं यह । हाँ, वह आपकी पिछले जन्म की जो भूल है, उस भूल का बदला यह व्यक्ति आपको दे रहा है। वह निमित्त है और भूल आपकी है। इसलिए ही वह बोल रहा है। अब वह अपनी भूल है, इसलिए यह बोल रहा है। तो वह व्यक्ति हमें उस भूल में से मुक्त करवा रहा है। उसकी तरफ भाव नहीं बिगाड़ना चाहिए। और हमें क्या कहना चाहिए कि प्रभु, उसको सद्बुद्धि दीजिए। उतना ही कहना, क्योंकि वह निमित्त है।
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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