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________________ १२ वाणी, व्यवहार में... हैं, तिरस्कार का बदला लिए बगैर रहते नहीं हैं। प्रश्नकर्ता: क्या उपाय करना चाहिए कि जिससे तिरस्कार के परिणाम भोगने की बारी नहीं आए? दादाश्री : उसके लिए दूसरा कोई उपाय नहीं है, सिर्फ प्रतिक्रमण ही करते रहना चाहिए। जब तक सामनेवाले का मन वापिस नहीं बदले तब तक करने चाहिए। और प्रत्यक्ष मिलें तो फिर वापिस मीठा बोलकर क्षमा माँग लेनी चाहिए कि, 'भाई, मेरी तो बड़ी भूल हो गई है। मैं तो मूर्ख हूँ, बेअक्कल हूँ।' इससे सामनेवाले के घाव भरते जाएँगे। हम अपना खुद का बुरा बोलें तो सामनेवाले को अच्छा लगेगा, तब उसके घाव भर जाएँगे। प्रश्नकर्ता : पैरों में गिरकर भी माफ़ी माँग लेनी चाहिए। दादाश्री : नहीं। पैरों में पढ़ें तो गुनाह होता है, ऐसा नहीं है। दूसरे प्रकार की वाणी से पलटो। वाणी से घाव हुआ हो न, तो वाणी से पलटो। पैरों में गिरने से तो वापिस मन में उस समय वह उल्टा चला हुआ व्यक्ति उल्टा ही समझेगा। मुझे बहुत तरह के लोग मिलते हैं। पर मैं उनके साथ एकता नहीं टूटने देता। एकता टूटे तो फिर उसकी शक्ति नहीं रहेगी। जब तक मेरी एकता है, तब तक उसकी शक्ति है। इसलिए सँभालना पड़ता है। हम जिस प्रयोगशाला में बैठे हैं, वहाँ प्रयोग सारे देखने पड़ते हैं न! प्रश्नकर्ता : ये अंतराय किस तरह से पड़ते हैं? दादाश्री : यह भाई नाश्ता दे रहे हों, तो आप कहो कि, 'अब रहने देन, बेकार ही बिगड़ेगा।' वह अंतराय डाला कहलाता है। कोई दान दे रहा हो तब आप कहो कि, 'इन्हें कहाँ दे रहे हो? ये तो हड़प जाएँ, ऐसे हैं।' यह आपने दान का अंतराय डाला। फिर दान देनेवाले दे या नहीं दे वह बात अलग है, पर आपने अंतराय डाला। फिर आपको कोई दुःख में भी दाता नहीं मिलेगा। वाणी, व्यवहार में... आप जिस ऑफिस में नौकरी कर रहे हों, वहाँ आपके आसिस्टेन्ट को 'बेअक्कल' कहा तो आपकी अक्कल पर अंतराय पड़ा! बोलो, अब इस अंतराय में फँस-फँसकर यह मनुष्यजन्म यों ही खो डाला है! आपको राइट (अधिकार) ही नहीं है सामनेवाले को बेअक्कल कहने का। आप ऐसा बोलते हो इसलिए सामनेवाला भी उल्टा बोलेगा, तो उसे भी अंतराय पड़ेगा! बोलो अब, ये अंतराय डालने से जगत् किस तरह रुकेगा? किसीको आपने नालायक कहा, तो आपकी ही काबलियत पर अंतराय पड़ेंगे। आप उसके तुरन्त ही प्रतिक्रमण करो तो अंतराय पड़ने से पहले ही धुल जाएँगे। प्रश्नकर्ता : वाणी से अंतराय नहीं डाले हों, पर मन से अंतराय डाले हों तो? दादाश्री : मन से डाले हुए अंतराय अधिक असर करते हैं, वे तो दूसरे जन्म में असर करते हैं। और इस वाणी से बोला हुआ इस जन्म में असर करता है। प्रश्नकर्ता : ज्ञानांतराय, दर्शनांतराय किससे पड़ते हैं? दादाश्री : धर्म में उल्टा-सीधा बोले, 'आप कुछ भी नहीं समझते और मैं ही समझता हूँ', उससे ज्ञानांतराय और दर्शनांतराय पड़ते हैं। या फिर कोई आत्मज्ञान प्राप्त कर रहा हो, उसमें विघ्न डाले तो उसे ज्ञान का अंतराय पड़ता है। कोई कहे कि, "ज्ञानी पुरुष' आए हैं, चलो आना हो तो।' तब आप कहो कि, 'अब ऐसे 'ज्ञानी पुरुष' तो बहुत देखे हैं।' यह अंतराय पड़ा! अब मनुष्य है, इसलिए बोले बिना तो रहता ही नहीं न! आपसे नहीं जाया जाए ऐसा हो, तब आपको मन में भाव होता है कि, 'ज्ञानी पुरुष' आए हैं पर मुझसे नहीं जाया जा सकता, तो अंतराय टूटेंगे। अंतराय डालनेवाला खुद नासमझी से अंतराय डालता है, उसकी उसे खबर नहीं है। कितने सारे अंतराय डाले हैं जीव ने! ये ज्ञानी पुरुष हैं, हाथ में मोक्ष देते हैं। चिंता रहित स्थिति बनाते हैं, फिर भी अंतराय कितने सारे हैं कि उसे 'वस्तु' की प्राप्ति ही नहीं होती।
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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