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________________ वाणी, व्यवहार में... सुबह चाय रखते समय ऐसे पटककर रखती है। तब हम समझ गए कि, 'ओहोहो, रात को हुआ वह भूली नहीं है!' वह तांता है। अभी कोई आकर कहेगा, 'सब बिना अक्कल के यहाँ बैठे हो ? उठो न, खाना खाने चलो।' तब सभी बैठे हुए लोग कहेंगे, 'अरे, खा लिया हमने । अब यह तूने यहाँ पर खिलाया, वह कम है क्या ? !' उसे दुःस्वर कहते हैं। कितने तो खिचड़ी खिलाते हैं, वे इतना मीठा बोलते हैं कि, 'भाई, ज़रा भोजन के लिए पधारिए न ।' तो हमें खिचड़ी इतनी अच्छी लगती है। भले ही सिर्फ खिचड़ी हो, पर वह सुस्वर है। एक भाई ने मुझे पूछा कि, 'आपके जैसी मीठी वाणी कब होगी?' तब मैंने कहा कि 'ये सारे जो नेगेटिव शब्द हैं आपके, वैसा बोलना बंद होगा तब ।' क्योंकि हरएक शब्द उसके गुण-पर्याय सहित होता है। हमेशा पोज़िटिव बोलो। भीतर आत्मा है, आत्मा की हाज़िरी है। इसलिए पोजिटिव बोलो। पोजिटिव में नेगेटिव नहीं बोलना चाहिए। पोज़िटिव हुआ, उसमें नेगेटिव बोलें, वह गुनाह है और पोज़िटिव में नेगेटिव बोलते हैं, इसलिए ये सारी मुश्किलें खड़ी होती हैं। 'कुछ भी नहीं बिगड़ा है' ऐसा बोलते ही भीतर कितना ही बदलाव हो जाता है। इसलिए पोज़िटिव बोलो। वर्षों के वर्षों बीत गए, पर थोड़ा भी नेगेटिव नहीं हुआ है मेरा मन । थोड़ा भी, किसी भी संजोग में नेगेटिव नहीं हुआ है। ये मन यदि पोज़िटिव हो जाएँ लोगों के, तो भगवान ही बन जाएँ। इसलिए लोगों से क्या कहता हूँ कि यह नेगेटिविटी छोड़ते जाओ, समभाव से निकाल करके । पोजिटिव तो अपने आप रहेगा फिर । व्यवहार में पोजिटिव और निश्चय में पोजिटिव नहीं और नेगेटिव भी नहीं ! २. वाणी से तरछोड़ - अंतराय प्रश्नकर्ता: कितने ही घर ऐसे होते हैं, कि जहाँ वाणी से बोलाचाली १० होती रहती है। पर मन और हृदय साफ होते हैं। वाणी, व्यवहार में... दादाश्री : अब वाणी से क्लेश होता हो, तब सामनेवाले के हृदय पर असर होता है। बाक़ी यदि नाटकीय रहता हो तब तो हर्ज नहीं है। बाक़ी ऐसा है न, बोलनेवाला तो हृदय से और मन से चोखा होता है, वह बोल सकता है। पर सुननेवाले को तो, उसे पत्थर लगा हो, ऐसा लगता है, इसलिए क्लेश होता ही है। जहाँ कोई भी बोल खराब है न, विचित्र हैं न, वहाँ क्लेश होता है। बोल (शब्द) तो लक्ष्मी है। उसे तो गिन गिनकर देना चाहिए। लक्ष्मी कोई गिने बगैर देता है? यह बोल एक ऐसी वस्तु है कि वह यदि सँभाल लिया गया तो सारे ही महाव्रत आ जाते हैं। किसीको थोड़ी भी तरछोड़ (तिरस्कारपूर्वक दुत्कारना) नहीं लगे, वैसा अपना जीवन होना चाहिए। आप तरछोड़ को पहचानते हो या नहीं पहचानते? बहुत पहचानते हो? अच्छी तरह? किसीको चोट लग जाती है क्या? प्रश्नकर्ता: भीतर में सूक्ष्म रूप से चोट लग जाती है। दादाश्री : वह सूक्ष्म लगे उसमें हर्ज नहीं है। सूक्ष्म लगे, वह तो हमें नुकसानदेह है। हालाँकि सामनेवाले के लिए भी विरोधक तो है ही । क्योंकि सामनेवाला एकता अनुभव नहीं करेगा। प्रश्नकर्ता : मान लो कि स्थूल तिरस्कार हुआ हो तो भी प्रतिक्रमण तुरन्त ही हो जाता है। दादाश्री : हाँ, किसीको तरछोड़ लग जाए तो फिर प्रतिक्रमण करने चाहिए। और दूसरा, फिर बाद में उसके साथ अच्छा बोलकर बात पलट देनी चाहिए। हमें पिछले जन्मों का भीतर दिखता है तब आश्चर्य होता है कि ओहोहो, तिरस्कार से कितना अधिक नुकसान है! इसलिए मज़दूरों का भी तिरस्कार नहीं हो, उस तरह बरतना चाहिए। अंत में साँप होकर भी काटते
SR No.009606
Book TitleVaani Vyvahaar Me
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages45
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size33 KB
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