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________________ सत्य-असत्य के रहस्य तुंडे तुंडे भिन्न सत्य प्रश्नकर्ता : सत्य हरएक का अलग-अलग होता है? दादाश्री : सत्य हरएक का अलग-अलग होता है, पर सत्य का प्रकार एक ही होता है। वह सारा रिलेटिव सत्य है, वह विनाशी सत्य है। सत्य-असत्य के रहस्य रिलेटिव, अंग्रेजी में रिलेटिव कहते हैं। वे अभी के लोग गुजराती भाषा का सापेक्ष शब्द समझते नहीं है, इसलिए मैं 'रिलेटिव' अंग्रेज़ी में बोलता हूँ। तो आप चौंक गए?! दो प्रकार के सत्य हैं। एक रिलेटिव सत्य है और एक रियल सत्य है। वह रिलेटिव सत्य समाज के आधीन है, कोर्ट के आधीन है। मोक्ष में जाने के लिए वह काम में नहीं आता। वह आपको डेवलपमेन्ट के साधन के रूप में काम आता है, डेवलपमेन्ट के समय काम में आता है। क्या नाम है आपका? प्रश्नकर्ता : चंदूभाई। दादाश्री : चंदूभाई, वह रिलेटिव सत्य है। वह बिलकुल गलत नहीं है। वह आपको यहाँ पर डेवलप होने में काम आएगा। पर जब खुद के स्वरूप का भान करना होगा, तब वह सत्य काम नहीं आएगा। उस दिन तो यह सत्य सारा गलत हो जाएगा। फिर 'ये मेरे ससूर हैं' ऐसा कहे तो कब तक बोलेगा? वाइफ ने डायवोर्स नहीं लिया तब तक। हाँ, फिर कहने जाएँ कि 'हमारे ससुर' तो? प्रश्नकर्ता : नहीं कह सकते। दादाश्री : इसलिए यह सत्य ही नहीं है। यह तो रिलेटिव सत्य है। प्रश्नकर्ता : 'ससुर थे' ऐसा कहें तो? दादाश्री : 'थे' ऐसा बोलें तो भी गालियाँ देगा। क्योंकि उसका दिमाग खिसक गया है और हम ऐसा बोलें, उसके बदले मेरी भी चुप और तेरी भी चुप! अब रिलेटिव सत्य रिलेटिव में से ही उत्पन्न होता है, नियम ऐसा है। और रिलेटिव सत्य मतलब विनाशी सत्य। यदि आपको यह सत्य, विनाशी सत्य पसंद हो तो विनाशी में रमणता करो और वह पसंद नहीं हो तो इस रियल सत्य में आ जाओ। व्यवहार में सत्य की ज़रूरत है, पर वह सत्य अलग-अलग होता है। चोर कहेगा, 'चोरी करना सत्य है।' लुच्चा कहेगा, 'लुच्चा होना सत्य है।' हरएक का सत्य अलग-अलग होता है। ऐसा होता है या नहीं होता? प्रश्नकर्ता : होता है। दादाश्री : इस सत्य को भगवान सत्य मानते ही नहीं। यहाँ जो सत्य है न, वह वहाँ पर गिनती में नहीं लेते। क्योंकि यह विनाशी सत्य है, रिलेटिव सत्य है। और वहाँ पर यह रिलेटिव तो चलता नहीं, वहाँ तो रियल सत्य चाहिएगा। सत्य और असत्य वे दोनों द्वंद्व हैं, दोनों विनाशी हैं। प्रश्नकर्ता : तो 'सत्य और असत्य' हमने मान लिया है?! दादाश्री : सत्य और असत्य अपनी माया से दिखता है कि 'यह सही और यह गलत।' और वह फिर 'सत्य और असत्य' सबके लिए एक-सा नहीं है। आपको जो सत्य लगता है, वह दूसरे को असत्य लगता है, इसे असत्य लगता हो वह किसी दूसरे को सत्य लगता है। ऐसे सबको एक जैसा नहीं होता। अरे, चोर लोग क्या कहते हैं, 'भाई, चोरी तो हमारा व्यवसाय है। आप अब किसलिए निंदा करते हो हमारी?' और हम जेल में भी जाते हैं। उसमें आपको क्या हर्ज है?! हम अपना व्यवसाय करते हैं।' चोर भी एक कम्युनिटी है। एक आवाज़ है न उनकी! यह कसाई का व्यवसाय करता हो वह हमें कहे, 'भाई, हम अपना व्यवसाय कर रहे हैं। आपको क्या आपत्ति है?' हरकोई अपने-अपने सत्य को सत्य कहता है, तो इसमें सत्य किसे कहना चाहिए?
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
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