SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 6
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सत्य-असत्य के रहस्य पर रहा हुआ है। प्रश्नकर्ता : तो सनातन सत्य नाम की वस्तु में आप मानते हैं? दादाश्री : सनातन सत्य नहीं है, पर सनातन सत् है। वह इटरनल (शाश्वत) कहलाता है। मूल तत्व अविनाशी है और उसकी अवस्था विनाशी सत्य-असत्य के रहस्य सत्य, विनाशी और अविनाशी प्रश्नकर्ता : सत्य और असत्य, इन दोनों के बीच का भेद क्या है? दादाश्री : असत्य तो असत्य है ही। पर यह जो सत्य है न, वह व्यवहार सत्य है, सच्चा सत्य नहीं है। ये जमाई, वे हमेशा के जमाई नहीं है, ससुर भी हमेशा के लिए नहीं होता। निश्चय सत्य हो वह सत् कहलाता है, वह अविनाशी होता है। और विनाशी, उसे सत्य कहा जाता है। यह सत्य भी वापिस असत्य हो जाता है, असत्य ठहरता है। फिर भी सांसारिक सुख चाहिए तो असत्य पर से सत्य में आना चाहिए, और मोक्ष में जाना हो तो यह सत्य भी असत्य ठहरेगा तब मोक्ष होगा! इसलिए यह सत्य और असत्य दोनों कल्पित ही हैं सिर्फ। पर जिसे सांसारिक सुख चाहिए, उसे सत्य में रहना चाहिए कि जिससे दूसरों को दुःख नहीं हो। परम सत्य प्राप्त करने तक ही इस सत्य की ज़रूरत है। 'सत्' में नहीं कभी फर्क इसलिए यह जो 'सत्य-असत्य' है न, इस दुनिया का जो सत्य है न, वह भगवान के सामने बिलकुल असत्य ही है, वह सत्य है ही नहीं। यह सब पाप-पुण्य का फल है। दुनिया आपको 'चंदूभाई' ही कहती है न? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : जब कि भगवान कहेंगे, 'नहीं, आप शुद्धात्मा हो।' सत् एक ही प्रकार का होता है, चाहे जहाँ जाओ तो भी। हरएक जीव में सत् एक ही प्रकार का है। सत् तो अविनाशी है और यह सत्य तो हरएक का अलग-अलग होता है, इसलिए वह विनाशी है। यह सत्य झूठ के आधार प्रश्नकर्ता: तो सत्य मतलब क्या? दादाश्री : एक व्यवहार सत्य है, जो पूरी दुनिया में रिलेटिव सत्य कहा जाता है और एक रियल सत्य, वह सत् कहलाता है, वह सत्य नहीं कहलाता। अविनाशी अस्तित्व को सत् कहते हैं और विनाशी अस्तित्व को सत्य कहते हैं। नहीं समाता, सत् किसीमें... प्रश्नकर्ता : तो सत् यानी क्या? दादाश्री : सत् का अर्थ दूसरा कुछ है ही नहीं। सत् मतलब कोई भी अविनाशी वस्तु हो, उसे सत् कहा जाता है। उसका दूसरा कोई अर्थ ही नहीं है इस वर्ल्ड में। केवल सत् ही इस दुनिया में अविनाशी है और वह किसी वस्तु में समाए ऐसा नहीं है, इस हिमालय के आरपार निकल जाए ऐसा है। उसे कोई दीवारों के बंधन या ऐसे कोई बंधन बाधक नहीं रिलेटिव सत्य का उद्भवस्थान? प्रश्नकर्ता : आत्मा का एक सत्य है। पर यह दूसरा रिलेटिव सत्य, वह किस तरह से उत्पन्न हुआ? दादाश्री : हुआ नहीं है, पहले से है ही। रिलेटिव और रियल हैं ही! पहले से ही रिलेटिव है। यह तो अंग्रेजी शब्द बोला है, बाक़ी उसका नाम गुजराती में सापेक्ष है। सापेक्ष शब्द सुना है? तो सापेक्ष है या नहीं यह जगत्?! यह जगत् सापेक्ष है और आत्मा निरपेक्ष है। सापेक्ष मतलब
SR No.009602
Book TitleSatya Asatya Ke Rahasya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherMahavideh Foundation
Publication Year2010
Total Pages31
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size212 KB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy