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________________ सर्व दु:खों से मुक्ति सर्व दुःखों से मुक्ति दादाश्री : आप मानते है ऐसा नहीं, सारी दुनिया मानती है। मगर आप सोचेंगे तो आपको खयाल में आ जायेगा कि इसका गुनाह नहीं प्रश्नकर्ता : चोर का गुनाह तो अभी नहीं है, लेकिन जब पकडा जाता है, तब गुनाह क्यों हो जाता है? दादाश्री : नहीं, वो टाईम तो उसका गुनाह पकडा गया। तुमने चोरी पहले किया था, तो आज आप पकडे गये। ऐसा उसने चोरी आज किया मगर पुलीस ने पकडा तब उसका गुनाह पकडा जायेगा। 'भुगते उसी की भूल', जो भुगतता है उसी की ही भूल है। प्रश्नकर्ता : फिर भी कभी कभी ऐसा लगता है, यह संसार में बहुत बड़ा अन्याय होता है। क्या करने का समझ गया न? देखो एसा बोलने का, 'हे दादा भगवान, हमने गुंड़े को बहुत मार दिया। हमको पश्चाताप होता है। उसका मैं माँफी माँगता हूँ, फिर ऐसा नहीं कहुँगा' ऐसे बोलेगा तो बहुत हो गया। आपकी दख़ल फिर कब हो जायेगी कि जब गुंड़े को आपने मार दिया और पीछे तुम बोलोगे कि गुंड़े को तो मारना ही चाहिये। तो ये दखल हो गई। तुम्हारा अभिप्राय फीट हो गया कि मारना ही चाहिये। तो दख़ल चालु रहेगी और अगर तुम्हारा ओपिनियन ऐसा फीट हो गया कि मारना नहीं चाहिये और ऊपर से प्रतिक्रमण किया तो तुम्हारी दखल बंध हो जायेगी। ये सब वीतराग भगवान की बात है। चोबीस तीर्थंकरों की बात है। कितनी अच्छी ये बात है!!! __ आपकी जेब जो काटता है, वो सचमुच गुनेगार नहीं है। वो तो निमित्त है। वो गुनाह आपका है। आपके गुनाह का फल आपको मिलने का हुआ, तब वो निमित्त मिला है। उसका कोई गुनाह नहीं है। आज आपके गुनाह से वो निमित्त आ गया है। वो काटनेवाला तो अभी इधर से पैसा काटके ले गया। उसको तो बहुत आनंद है, होटल में जायेगा, खाना खायेगा। दु:ख किसको होता है? जिसको दुःख है उसका ही गुनाह है और वो आदमी जब पोलीस के हाथ में पकडा जायेगा, तब वो उसका गुनाह पकडा जायेगा। आज आपको दःख होता है, तो आपका गुनाह पकडा गया। ऐसा हरेक मामले में है। आपको कोई गाली दे तो वो गनाह आपका है, गाली देनेवाले का नहीं। सब लोग क्या मानते है कि ये गाली देता है, इसका ही गुनाह है। चोरने जेब काटी तो चोर ही गुनहगार है ऐसा बोलते है न सब लोग?! दादाश्री : ये संसार में कभी अन्याय नहीं होता। जो भी कुछ होता है, वो न्याय ही होता है। हरेक जीव अपना खुद का whole and sole responsible है। दूसरा कोई इसमें दखलबाजी करता नहीं है। दूसरा कोई जो कुछ करता है, वो निमित्त है। कोई किसी को कुछ कर सकनेवाला ही नहीं है। मगर अपनी भूल से वो निमित्त होता है। जिसकी भूल नहीं, उसको निमित्त नहीं मिलता। महावीर को कोई निमित्त नहीं था। क्योंकि उनकी भूल पूरी हो गयी थी। भूल थी वहाँ तक उनके निमित्त थे और वहाँ तक उनको उपसर्ग भी आये थे। किसी भी जीव को कुछ भी दुःख नहीं देना चाहिये। कोई अपने को दु:ख दे तो सहन कर लेना चाहिये। किसी को दुःख देने से बहुत responsibility आती है। कितने नुकसान झेलोगे? एक या दो? तुम्हारी जेब काट ली और पचास हजार चले जाये फिर तुम चोर को गाली देता है मगर वो रूपये फिर वापस आते है कि नहीं? प्रश्नकर्ता : अभी तक तो मैं भी वो ही मानता था कि गनहगार चोर ही है।
SR No.009601
Book TitleSarva Dukho Se Mukti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDada Bhagwan
PublisherDada Bhagwan Foundation
Publication Year2003
Total Pages47
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Akram Vigyan
File Size94 KB
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